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आहार शुद्धि जीवन निर्माण में सहायक -डॉ. उमेश पुरी 'ज्ञानेश्वर'

>> Tuesday, August 3, 2010


आहार जो हम खाते हैं, मात्र वही नहीं है। आहार वह है जो हम इन्द्रियों से ग्रहण करते हैं, यही आहार की विस्तृत परिभाषा है।
इन्द्रियाँ दस हैं-पाँच ज्ञानेद्रियाँ (आँख, जिह्ना, नाक, कान और त्वचा) और पाँच कर्मन्द्रियाँ (हाथ, पैर, वाणी, लिंग और गुदा)। रूप (दृश्य), रस (स्वाद), गन्ध, शब्द और स्पर्श इनके क्रमशः विषय हैं और इन विषयों की प्राप्ति जिस रूप में हो वह इन्द्रियों का आहार है।
आँखों का आहार क्या हो ?
आँखों से दृश्य रूप में जो भी अश्लील देखेंगे को आप यह जान ले कि आपकी आँख अशुद्ध आहार का सेवन कर रही है। अश्लील दृश्य फिल्मों में, चित्रों में, पुस्तकों में  या किसी भी अन्य रूप में हो सकते हैं, जो आप यदाकदा देखते रहते हैं।
अश्लील व कुत्सित दृश्यों को न देखने का संकल्प लें और इस संकल्पानुसार व्यवहार में परिवर्तन लाते हुए अच्छे और मन को सुविचारों का पोषण देने वाले दृश्य व चित्रों को देखें जो मन की स्थिरता बनाए रखें। देवता या इष्ट देवता के चित्रों पर ध्यान केन्द्रित करने पर पोषक आहार ही ग्रहण करेंगे। वस्तुतः आँखों को सात्‍विक दृश्यों को देखने की आदत डालें। 
जिह्ना का आहार क्या हो ?
शरीर निर्वाह के लिए भोजन तो सबको करना ही पड़ता है। अब चाहे मनुष्य आस्तिक हो या नास्तिक बिना आहार के तो रह नहीं सकता।
मनुष्य का मन स्वाभाविक रूप से जिस भोजन में ललचाता है अर्थात्‌ जिस भोजन की बात सुनकर, देखकर और  चखकर मन आकृष्ट होता  है, उसके अनुसार इसकी सात्त्िवक, राजसिक या तामसिक निष्ठा होती है।
नाक को दुर्गन्ध से बचाएं !
आपकी नाक भी महत्त्वपूर्ण है जो तुरन्त किसी भी प्रकार की गन्ध को ग्रहण कर लेती है। आपको सदैव ऐसा प्रयास करना चाहिए कि आप ऐसी गन्ध न सूँघें जो मन पर अपना कुप्रभाव डालती हो और मन चंचल, अस्थिर व उद्वेलित हो जाए। राजसिक एवं तामसिक गन्धों को त्याज्य करके सदैव सात्‍विक सुगन्धों को ग्रहण करें जो आपके मन को तुरन्त स्थिर करे। आप स्वयं सोचकर देखें, मन्दिर में जाने पर वहां व्याप्त सात्‍विक सुगन्ध आपके मन को भा जाती है और मन प्रसन्न व स्वच्छ हो जाता है। वस्तुतः सात्‍विक सुगन्ध जो मन को प्रफुल्लित व शान्त करें, उन्हें ही सूँघें।
कान को सात्‍विक  आहार दें !
कान का आहार शब्द है, जो ध्वनि रूप में वह ग्रहण करता है। कान से आप जो कुछ भी सुनते हैं उसका सीधा प्रभाव मन पर पड़ता है। कानों को मधुर व मन को भाने वाले सात्‍विक शब्दों का आहार दें। अश्लील व कुत्सित शब्द जो मन को अस्थिर, उद्वेलित व उत्तेजित करें उन्हें ग्रहण न करें। यदि ग्रहण करेंगे तो मन विकारों के वश में हो जाएगा, तब आप उसे वश में नहीं कर पाएंगे। वस्तुतः कान को सात्‍विक  ध्वनियों व शब्दों का आहार दें जिससे मन अस्थिर व उत्तेजित न हो। देवताओं के भजन व आध्यात्मिक प्रवचनों के ऑडियो कैसेट सात्‍विक  ध्वनियों के अन्तर्गत आते हैं। अश्लील साहित्य, फिल्मी गीत जो अश्लील हों एवं मन में भोग की रुचि उत्पन्न करने वाला संगीत राजसिक और तामसिक ध्वनियों के अन्तर्गत आता है, उसे न सुनें।
त्वचा को सात्‍विक स्पर्श दें !
आप जो कुछ स्पर्श करते हैं उसका सीधा प्रभाव मन पर पड़ता है। ऐसी वस्तुओं को स्पर्श न करें या हाथों को अश्लील (राजसिक व तामसिक स्पर्श) स्पर्श कदापि न दें। स्पर्श कैसा भी हो मन में अनेक प्रकार की विचार लहरियाँ उठा देता है जिससे मन या तो  अस्थिर हो जाता है या शान्त। त्वचा को सात्‍विक  स्पर्श देने की आदत बनाएँ।
आहार की शुद्धि जीवन निर्माण करती है!
आहार शुद्ध हो तो मनोनिग्रह हो जाता है। आहार मन को वश में करने के लिए महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। जो कुछ हम इन्द्रियों से ग्रहण करते हैं वो आहार है। आहार सात्‍विक  होना चाहिए, ना कि तामसिक या राजसिक।
हम सब आँखों से जो कुछ देखते हैं, जिह्ना से जो चखते व बोलते हैं, नाक से जो सूघँते हैं, कानों से जो कुछ सुनते हैं और हाथों से जो कुछ स्पर्श करते हैं, उस सबका मन पर बड़ा प्रभाव पड़ता है। कोई सिनेमा देखता है, कोई भाषण सुनता है, कोई कुछ भी स्पर्श करता हैं, कोई कुछ भी चखता है, कुछ लोग कुछ भी सूँघते हैं-ये सब मन में अनेक विचार लहरियों को उठा देते हैं, जिससे मन को वश में करना या तो सरल हो जाता है या फिर कठिन।
वस्तुतः मनोनिग्रह के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करने में आहार की शुद्धि अत्यावश्यक है। इन्द्रियों के माध्यम से हम जो कुछ भी ग्रहण करते हैं। वह अत्यन्त महत्वपूर्ण है क्योंकि इस सब से मन तुरन्त प्रभावित होता है। आप मन को वश में करना ही चाहते हैं तो आपको अपनी इन्द्रियों को राजसिक व तामसिक आहार के बदले सात्‍विक आहार देना चाहिए।
निष्कर्षतः आपको आहार की शुद्धि के लिए इन्द्रियों को सात्‍विक  आहार ही देना चाहिए। सात्‍विक आहार देने पर मन को वश में करना सरल होगा। मनोनिग्रह के लिए आँख, नाक, कान, जिह्ना और त्वचा को सात्‍विक  आहार देते हुए यह संकल्प लें-'हम सदैव सात्‍विक  दृश्य देखेंगे, सात्‍विक  गन्ध सूँघेंगे, सात्‍विक  शब्द सुनेंगे, सात्त्िवक भोजन लेंगे और सात्‍विक स्पर्श ही करेंगे।'
यदि आपने इस संकल्प का पालन किया तो आप स्वतः ही आहार की शुद्धि को तत्पर होंगे और फिर आपके लिए मन को वश में करना भी सरल होगा। मन वश में होगा तो आपके व्यक्तित्व में भी चार चांद लगेंगे  जिसके फलस्वरूप आपका जीवन भी उन्नतिशील होगा और आप स्वस्थ, शान्त और आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी होंगे।

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