सहज ध्यान मुद्रा
>> Monday, August 9, 2010
मुद्रा बनाने की रीति
पद्मासन में बैठकर बाएं हाथ की हथेली पर दाएं हाथ की हथेली को हल्के से रखने पर ध्यान मुद्रा बनती है। ध्यान रहे कि सिर, गर्दन, रीढ़ की हड्डी सीधी रहे। आंखें और होंठ सहजता से बन्द रहें। ध्यान अपने इष्टदेव के स्वरूप पर टिकाएं। शरीर से ममता हटाते हुए कुछ देर के लिए विचार रहित अवस्था में रहने का प्रयास करें। जो पद्मासन नहीं कर सकते उन्हें यह सुखासन या स्वास्तिक या पालथी आसन में बैठकर कर लेना चाहिए।
कब करें
यह मुद्रा कोई भी लम्बे समय तक कर सकता है। अल्पतम बीस मिनट और धीर-धीरे बढ़ाकर एक घंटे तक कर सकते हैं। उक्त सहज ध्यान मुद्रा को करते समय एक हथेली पर दूसरी हथेली रखते समय अंगूठों के अग्रभाग परस्पर मिलाए रखें तो एक ऐसी ध्यान मुद्रा बन जाती है जो लम्बे ध्यान के लिए उपयुक्त है।
लाभ
इसके अभ्यास से मन एकाग्र होता है और चेहरे पर ओज बढ़ता है। आत्मविश्वास बढ़ता है। मानसिक शान्ति मिलती है। मन की चंचलता शान्त होती है। सात्विक विचारों की उत्पत्ति होती है। प्रभु भजन में मन लगता है। ध्यान की उच्चतर स्थिति में पहुंचने में सहायता मिलती है। आत्म साक्षात्कार एवं ईश्वर के साक्षात्कार में सहायता मिलती है।
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