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मन को अनावश्यक बोझ से बचाएं-डॉ. उमेश पुरी 'ज्ञानेश्वर'

>> Tuesday, August 10, 2010


     मन को वश में लाना चाहते हैं तो आपको सजगता एवं सावधानी पूर्वक मन को अनावश्यक बोझ से बचाना चाहिए। यह अनावश्यक बोझ व्यर्थ की मानसिक समस्याएँ खड़ा कर देता है जो मनोनिग्रह में बाधक होती हैं। इसी सन्दर्भ में आगे चर्चा करेंगे और यह बताएंगे कि मन को चंचल न होने दें। यह कैसे करें, अब इसकी चर्चा करते हैं। इस चर्चा से आप मन को चंचल होने से बचा सकेंगे।
मन को चंचल न होने दें !
सबको यह बात सताती है कि मन नहीं लगता, यह बहुत चंचल है। मन को रोकने के लिए, इसकी चंचलता मिटाने के लिए कोई उपाय ज्ञात हो जाए तो कितना अच्छा है।
इसका सरल उपाय यही है-'अपना हृदय पूर्णतः परमात्मा को सौंप दें। सुबह-शाम, दिन-रात, सारा समय, यहां तक काम के समय और आराम के समय परमात्मा को स्मरण किए बिना मत रहो। यह भली-भाँति कर लोगे तो फिर किसी व्रत या तप की आवश्यकता नहीं रहती। परमात्मा तप-जप से अधिक प्रेम या भक्ति से प्रसन्न होता है। मन तो स्वभाव से ही अस्थिर होता है और चंचलता के कारण इधर-उधर भागने का प्रयत्न करता है। किन्तु उस पर विजय तभी पा सकते हैं जब दृढ़ता के साथ चंचल मन को डांटकर कहें-'तू किधर भटक रहा है, तेरा लक्ष्य तो परमात्मा है।' चंचल मन को एक जगह स्थिर करना श्रम-साध्य होता है। प्रार्थना के समय जब मन इधर-उधर भटकने लगे तो तुरन्त परमात्मा के समक्ष अपनी भूलें स्वीकार करो और दीन होकर उसकी शरण में चले जाओ।
मन में जो भी स्मृतियाँ रह-रहकर आती हैं उन्हें मिटाने के लिए सर्वोत्तम उपाय है कि मन में स्मृति-रूप में जो आए, वह अब है नहीं-ऐसा समझकर उसकी उपेक्षा करें और उससे तटस्थ हो जाएँ अर्थात्‌ वर्तमान में उससे हमारा सम्बन्ध है ही नहीं-यह दृढ़ विचार कर लें। यह सीखने की बात नहीं है, प्रत्युत अनुभव करने की बात है, करके तो देखें।
मन की चंचलता (अस्थिरता) को देखकर घबराओ नहीं, उससे तो और हानि होगी। मन को धीरे-धीरे समझाकर भगवान के समक्ष ले आओ। तुम प्रभु की कृपा-दृष्टि अवश्य पाओगे। मन की स्थिरता के लिए अभ्यास की आवश्यकता होती है। सदैव परमात्मा का स्मरण करते रहेंगे तो एकाग्रता प्राप्त करना कठिन नहीं होगा। अभ्यास से समस्त कार्यों में सफलता मिलती है।
परमात्मा को कभी मत विस्मरण करो। हर समय सुख-दुःख में भी उसे स्मरण करते रहो। वह हमारे बीच में है, उसकी अवहेलना नहीं होनी चाहिए। आप स्वयं बताएँ-यदि आपका मित्र आपसे मिलने के लिए आए तो क्या आप उसके प्रति उदासीनता दिखाएंगे, उसका तिरस्कार करेंगे। कभी नहीं करेंगे। इसी प्रकार परमात्मा आपका प्रियतम मित्रा है। उसके प्रति भला तिरस्कार हो सकता है।
     मन पर पड़ने वाला अनावश्यक बोझ उसको सरल नहीं होने देता। मन जितना ही निर्मल होगा, उसे वश में करना उतना ही सरल होगा। मन को पूर्णतः वश में करने के लिए पूर्ण नैतिक बनें। जो पूर्ण नैतिक है उसे कुछ करना शेष नहीं वह मुक्त है। उसके मन पर कोई बोझ नहीं है। ऐसे मन को संयमित किया जा सकता है क्योंकि नैतिकता के कारण मन में जो पवित्रता व्याप्त होने लगती है उससे मन शुद्ध होने लगता है। मन को संयमित करने के लिए साधना की ऐसी रीति चाहिए जिससे मन की अशुद्धियाँ (मन की वासनाएँ, वृत्तियाँ, अंह, क्रोध, घृणा, भय, ईर्ष्या, काम, लोभ, दम्भ, मोहादि) दूर हों। इन अशुद्धियों से ही मन में विक्षोभ उत्पन्न होता है और मन अशान्त हो जाता है। मन को अशुद्धि मुक्त करने से मन पर बोझ नहीं रहता है।

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