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शिक्षा का क्षेत्र कौन सा हो?(भाग-1)

>> Saturday, February 19, 2011


(यह लेख डॉ. उमेश पुरी 'ज्ञानेश्वर' की नई पुस्तक 'ज्योतिष और शिक्षा विचार' पुस्तक का एक अंश है! शीघ्र यह पुस्तक ई-बुक के रूप में पाठकों के लिए उपलब्ध होगी! प्रतीक्षा करें! तब तक इस पुस्तक के अंश एक सीरीज के रूप में ज्‍योतिष निकेतन पर पढ़ते रहें। प्रतिदिन आकर लेख पढ़ना न भूलें वरना अनमोल ज्ञान से वंचित रह जाएंगे!)
हर काई शिक्षित होना चाहता है क्योकि शिक्षा के बिना कुछ भी नहीं है। यदि आप अशिक्षित हैं तो आपका जीवन व्यर्थ है। यदि काई अपनी सन्तान को शिक्षा नहीं दिला सकता है तो वह सबसे बड़ा पापी व अपराधी है। शिक्षा दिलाना सबसे बड़ा धर्म है। इससे बड़ा दान कोई नहीं होता है। आठवीं पास करने के बाद यह प्रश्न मन में आ जाता है कि मेरा शिक्षा का क्षेत्र कौन सा हो जिससे मैं सहजता संग शिक्षा पूर्ण करके सफल व्यक्ति बन सकूं।
शिक्षा का विचार कैसे करें?
कुंडली से जातक आयु व भाग्य में बली हो तो शिक्षा का विचार करना चाहिए। सर्वप्रथम यह जान लें कि-
1. द्वितीय भाव व द्वितीयेश से विद्या की निपुणता व प्रवीणता ज्ञात होती है। यह भाव वाणी का है एवं गुरु इस भाव का कारक है।
2. चतुर्थ भाव, चतुर्थेश एवं नवम भाव व नवमेश से विद्या, विद्वता एवं कल्पना शक्ति की प्राप्ति का विचार किया जाता है।
3. पंचम भाव व पंचमेश से बुद्धि का विचार किया जाता है।
4. दशम  व दशमेश से विद्या द्वारा प्राप्त यश व विश्वद्यिालय स्तर की परीक्षाओं में उत्तीर्ण होने का विचार किया जाता है।
5. दूसरे भाव का कारक गुरु, चौथे भाव का कारक चन्द्र व बुध, पंचम भाव का कारक गुरु, नवम भाव का कारक ग्रह सूर्य व गुरु एवं दशम भाव का कारक सूर्य, बुध, गुरु व शनि है। अतः सूर्य, चन्द्र, बुध, गुरु व शनि ग्रह बली होने चाहिएं।
यदि आपकी कुण्डली में दूसरे, चौथे, पांचवे, नौवें व दसवें भाव के साथ-साथ उक्त पांच ग्रह अच्छी स्थिति में हैं तो आप अच्छी शिक्षा आसानी से पा सकेंगे।
    हमारे विचार से गुरु(बुद्धि), बुध(ज्ञान व विद्या का कारक), चन्द्र(कल्पना शक्ति व मानसिक एकाग्रता), शनि(अभ्यास), सूर्य (आत्मबल या आत्मविश्वास) बली हैं तो जातक भली-भांति शिक्षित हो सकेगा। यदि आप इन अनमोल सूत्रों का ध्यान नहीं रखते हैं तो आप विद्या की दृष्टि से कुण्डली का सम्यक विश्लेषण नहीं करते हैं।
    यह जान लें कि बुध से विद्वता, विद्या ग्रहण करने की शक्ति व अध्ययन करने की क्षमता का अनुमान होता है और गुरु से विद्या के क्रमबद्ध विकास का बोध होता है।
शिक्षा का क्षेत्र कैसे जानें?
    अब यह प्रत्येक ग्रह की शिक्षा का क्षेत्र क्या है? विद्या अनेक प्रकार की होती है, इसलिए शिक्षा के क्षेत्र भी कई हो जाते हैं, जैसे-साहित्य, व्याकरण, भाषाविज्ञान, कानून, ज्योतिष, अध्यात्म, वेदान्त, काव्य, चिकित्सा शास्त्र, यान्त्रिक, ललित कला, चित्र कला आदि।
सूर्य से चिकित्सा शास्त्र, चन्द्रमा से ज्योतिष शास्त्र, फोटोग्राफी व कला, मंगल से युद्धकला, शस्त्र कला, भूगोल,  बुध से  मेडिसन, धर्म, शास्त्र, गणित, वेदान्त, ग्रन्थकार, भाषण कला, शिल्प शास्त्र, रसायन, वाणिज्य, गुरु से वेदान्त, व्याकरण, भाषा विज्ञान, शिक्षा शास्त्र आदि, शुक्र से वादन, नृत्य, चित्र कला, अभिनय कला, वस्त्र कला, फैशन आदि, शनि से तकनीकी ज्ञान, आंग्ल भाषा, नीच विद्या, तन्त्र, मन्त्र, जादू, इंजीनियरिंग, मैकेनिकल, कृषि शास्त्र आदि की शिक्षा, राहु से अन्यदेशीय विद्या का ज्ञान देता है।
अनुभव में यह देखा गया है कि गुरु ग्रह का दूसरे, तीसरे, चौथे एवं नौवें भाव से सम्बन्ध हो तो विद्या का उच्च ज्ञान प्राप्त होता है।
चन्द्र व लग्न कुण्डली दोनों में पंचमेश बुध, गुरु, शुक्र के साथ केन्द्र या त्रिकोण या एकादश में हो तो जातक को अपने क्षेत्र का विद्वान या विशेषज्ञ होता है।
    यह भी देखने में आया है कि विद्याकारक ग्रह गुरु व बुद्धि कारक ग्रह बुध परस्पर युत या दृष्ट हों जातक को राज्य व जनता से सम्मान मिलता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उसने अपने क्षेत्र की उत्कृष्ट शिक्षा पायी होती है। यदि ये दोनों ग्रह स्वराशि, उच्च या स्वनवांश में या मित्र नवांश में हों तो अपनी स्थिति के अनुसार श्रेष्ठ फल देते हैं। यह जान लें कि इन दोनों ग्रह की परस्पर युति या परस्पर संबंध मात्र से बुद्धि में तीक्ष्णता  आ जाती है।
    शिक्षा अत्यन्त आवश्यक है। इस लेख में शिक्षा का कुण्डली से विश्लेषण कैसे करें यह बता रहे हैं। इस ज्ञान को पाकर आप किसी भी कुंडली से यह जान सकेंगे कि अमुक जातक शिक्षा के क्षेत्र में कितना सफल होगा और उसकी शिक्षा किस क्षेत्र में होगी। शिक्षा का विश्लेषण कुण्डली से भली-भांति करना चाहिए। लेकिन कैसे करना चाहिए इसकी चर्चा यहां कर रहे हैं और इस ज्ञान में वृद्धि के लिए अगला लेख अवश्य पढ़ें। उसमें अनेक ऐसे योग बताए जाएंगे जिससे आप शिक्षा के विषय में भली-भांति जान सकेंगे।(क्रमशः)

1 comments:

अम्बरीष कुमार गोपाल February 19, 2011 at 10:49 PM  

विद्या से सम्बंधित भावों/ग्रहों का सुन्दर स्पष्टीकरण है। ज्योतिष के विद्यार्थियों के लिए अत्यंत उपयोगी है आपका यह लेख। लेख के द्वितीय भाग और तत्संबंधित ई-बुक की की आतुरता से प्रतीक्षा है।

अम्बरीष

आगुन्‍तक

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