ज्योतिष योग एवं व्यक्तित्व
>> Thursday, February 17, 2011
व्यक्तित्व जांचने के ज्योतिष योग यहां बता रहे हैं इन योगों को कुण्डली में देखकर आप किसी के व्यक्तित्व को जांच सकते हैं। व्यक्तित्व जांचने के कुछ ज्योतिष योग इस प्रकार हैं-
चन्द्रमा या राहु पांचवे भाव में स्थित हो या उनमें परस्पर दृष्टि सम्बन्ध हो तो जातक उदासीन एवं निराशावादी होता है।
चन्द्रमा और राहु लग्न या आत्मकारक से नौवें भाव में हो तो जातक निर्बल होता है।
लग्न पर मंगल की दृष्टि पड़े तो जातक का स्वभाव क्रोधी होता है और वह छोटी-छोटी बातों पर उग्र हो जाता है।
कारकांश मीन राशि में हो जातक गुणवान होता है और दूसरों के लिए आदर्श स्थापित करता है।
यदि केतु का सम्बन्ध कारकांश से हो तो जातक में धर्माचरण की अल्पता होती है, लेकिन अपने अच्छे होने का दिखावा वह अधिक करता है। सूर्य और राहु कारकांश में हो तथा मंगल की उन पर दृष्टि पड़े तो जातक क्रोधी होगा। कारकांश से दसवें भाव में बुध स्थित हो तथा उस पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि पड़ती हो तो व्यक्ति अत्यन्त बुद्धिमान होता है। कारकांश से तीसरे भाव में अशुभ ग्रह हो तो जातक आत्मविश्वासी होता है और उसमें उर्जा व साहस भी भरपूर रहता है। वे अपने बल पर अपना भविष्य स्वयं बनाने वाले होते हैं। अशुभ ग्रह कारकांश से पांचवे और नौवें हो तथा उसे कोई अशुभ ग्रह देखे तो जातक का जीवन सामान्य बीतता है। ऐसे लोगों को भीड़ एवं रैली से घबराहट होती है जिनका शनि कारकांश या इससे पांचवे भाव में होता है। जिन लोगों की कुण्डली में केतु कारकांश से दूसरे भाव में होता है और अशुभ ग्रह उसे देखता है तो जातक स्पष्ट बोलने की अपेक्षा बातों को छुपाने का प्रयास करता है।
पंचमेश का आत्मकारक या लग्न से दृष्टि सम्बन्ध हो तो जातक बुद्धिमान होता है।
लग्नेश एवं आत्मकारक से चौथे भाव के स्वामी की दृष्टि लग्न व आत्मकारक पर होती है तो ऐसे जातक गम में भी मुस्कुराने वाले होते हैं और चरित्रवान् हाते हैं।
आत्मकारक एवं लग्न से बारहवें भाव के स्वामी की दृष्टि लग्न एवं आत्मकारक पर हो तो जातक खुले हाथों से खर्च करने वाला होता है।
प्राणपद और आरूढ़ लग्न का रंग रूप पर प्रभाव पड़ता है। प्राणपद लग्न कर्क राषि में स्थित होने पर व्यक्ति में दिखावे की प्रवृत्ति होती है।
सिंह राशि में प्राणपद होने से व्यक्ति व्यक्ति दिखने मे बहुत आकर्षक नहीं होता है और उपपद से दूसरे भाव में शनि होता है तब भी जातक आकर्षकहीन होता है।
कन्या लग्न में प्राणपद होने से व्यक्ति बाहर से रूखा नजर आता है लेकिन हृदय से दयालु व नम्र होता है। खान-पान में मीठा इन्हें अधिक पसंद होता है। प्राणपद मकर राशि में होने पर व्यक्ति की त्वचा का रंग साफ व लालिमा लिये होता है।
उपपद से सातवें भाव का स्वामी लग्न में होता है तो ऐसे जातक आकर्षकहीन होते हैं।
जिनकी आरूढ़ लग्न से दूसरे भाव में स्थित केतु जातक को अपनी उम्र से अधिक दिखाता है।
कुण्डली में बुध एवं शुक्र की स्थिति दूसरे या पांचवे भाव में होती है तो जातक के होंठ एवं जबड़े दिखने में सुन्दर नहीं होते हैं, ऐसे में इनकी मुस्कान आकर्षण विहीन होती है।
चन्द्रमा या राहु पांचवे भाव में स्थित हो या उनमें परस्पर दृष्टि सम्बन्ध हो तो जातक उदासीन एवं निराशावादी होता है।
चन्द्रमा और राहु लग्न या आत्मकारक से नौवें भाव में हो तो जातक निर्बल होता है।
लग्न पर मंगल की दृष्टि पड़े तो जातक का स्वभाव क्रोधी होता है और वह छोटी-छोटी बातों पर उग्र हो जाता है।
कारकांश मीन राशि में हो जातक गुणवान होता है और दूसरों के लिए आदर्श स्थापित करता है।
यदि केतु का सम्बन्ध कारकांश से हो तो जातक में धर्माचरण की अल्पता होती है, लेकिन अपने अच्छे होने का दिखावा वह अधिक करता है। सूर्य और राहु कारकांश में हो तथा मंगल की उन पर दृष्टि पड़े तो जातक क्रोधी होगा। कारकांश से दसवें भाव में बुध स्थित हो तथा उस पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि पड़ती हो तो व्यक्ति अत्यन्त बुद्धिमान होता है। कारकांश से तीसरे भाव में अशुभ ग्रह हो तो जातक आत्मविश्वासी होता है और उसमें उर्जा व साहस भी भरपूर रहता है। वे अपने बल पर अपना भविष्य स्वयं बनाने वाले होते हैं। अशुभ ग्रह कारकांश से पांचवे और नौवें हो तथा उसे कोई अशुभ ग्रह देखे तो जातक का जीवन सामान्य बीतता है। ऐसे लोगों को भीड़ एवं रैली से घबराहट होती है जिनका शनि कारकांश या इससे पांचवे भाव में होता है। जिन लोगों की कुण्डली में केतु कारकांश से दूसरे भाव में होता है और अशुभ ग्रह उसे देखता है तो जातक स्पष्ट बोलने की अपेक्षा बातों को छुपाने का प्रयास करता है।
पंचमेश का आत्मकारक या लग्न से दृष्टि सम्बन्ध हो तो जातक बुद्धिमान होता है।
लग्नेश एवं आत्मकारक से चौथे भाव के स्वामी की दृष्टि लग्न व आत्मकारक पर होती है तो ऐसे जातक गम में भी मुस्कुराने वाले होते हैं और चरित्रवान् हाते हैं।
आत्मकारक एवं लग्न से बारहवें भाव के स्वामी की दृष्टि लग्न एवं आत्मकारक पर हो तो जातक खुले हाथों से खर्च करने वाला होता है।
प्राणपद और आरूढ़ लग्न का रंग रूप पर प्रभाव पड़ता है। प्राणपद लग्न कर्क राषि में स्थित होने पर व्यक्ति में दिखावे की प्रवृत्ति होती है।
सिंह राशि में प्राणपद होने से व्यक्ति व्यक्ति दिखने मे बहुत आकर्षक नहीं होता है और उपपद से दूसरे भाव में शनि होता है तब भी जातक आकर्षकहीन होता है।
कन्या लग्न में प्राणपद होने से व्यक्ति बाहर से रूखा नजर आता है लेकिन हृदय से दयालु व नम्र होता है। खान-पान में मीठा इन्हें अधिक पसंद होता है। प्राणपद मकर राशि में होने पर व्यक्ति की त्वचा का रंग साफ व लालिमा लिये होता है।
उपपद से सातवें भाव का स्वामी लग्न में होता है तो ऐसे जातक आकर्षकहीन होते हैं।
जिनकी आरूढ़ लग्न से दूसरे भाव में स्थित केतु जातक को अपनी उम्र से अधिक दिखाता है।
कुण्डली में बुध एवं शुक्र की स्थिति दूसरे या पांचवे भाव में होती है तो जातक के होंठ एवं जबड़े दिखने में सुन्दर नहीं होते हैं, ऐसे में इनकी मुस्कान आकर्षण विहीन होती है।
2 comments:
लेख ज्योतिष के प्रारंभिक जिज्ञासुओं के लिए थोड़ा कठिन है| कृपा करके बीच बीच में ज्योतिष से सम्बंधित शबदावली का भी परिचय देते रहेंगे तो अति कृपा होगी| संभवतः सामान्य व्यक्तियों को कारकांश, आरूढ़ लग्न, प्राणपद और उपपद के बारे में पता नहीं होगा...क्योंकि इनका प्रयोग सामान्यतः जैमिनी ज्योतिष में होता है.......उदाहरण देकर भी विषय को अधिक स्पष्ट बनाया जा सकता है.
गोपाल
आजकल कम्प्यूटर कुण्डली का सम्पूर्ण गणित करा लेना चाहिए उसमें ये सभी गणनाएं होती हैं। फलित पक्ष्ा कम्प्यूटर का हास्यास्पद् होता है। उसकी आवश्यकता नहीं होती है।
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