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व्रत क्यों और किसलिए(भाग-4)

>> Friday, March 25, 2011

    
   
    व्रत धार्मिक अनुष्ठान को पूरा करने के लिए संकल्प लेना।  एक प्रकार से व्रत को पूजादि से जुड़ा हुआ धार्मिक कृत्य माना गया है। व्रत करने वाले को प्रतिदिन स्नान, अल्पाहार, देवों का सम्मान, इष्टदेव के मन्त्रों का मानस जप व उनका ध्यान करना चाहिए। उनकी पूजा-अर्चना करनी चाहिए। इसमें होम व दान भी करना चाहिए। पिछले अंक में कुछ व्रतों की चर्चा की थी। अब अन्य व्रतों की चर्चा करेंगे।
    इन्दिरा एकादशी का व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को रखा जाता है। यह व्रत पितरों की शान्ति करता है। अधागति पितर शुभगति को पाते हैं। पितरों के उद्वार के लिए किया जाता है। इस व्रत को करने वाला महापुण्य पाता है और उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। व्रती समस्त भोग भोगकर परमात्मा की शरण में जाता है।
    रमा एकादशी का व्रत कार्तिक कृष्ण एकादशी को रखा जाता है। यह व्रत पापनाशक है और ब्रह्महत्या के पाप को भी दूर करता है। स्त्रियों के लिए सौभाग्यप्रद है और इस व्रत को रखने वाला ईश चरणों में स्थान पाता है।
    देवोत्थानी एकादशी का व्रत कार्तिक शुक्ल एकादशी को रखा जाता है। इस एकादशी में भगवान उठते हैं, वे आषाढ़ शुक्ल एकादशी को सो जाते हैं। इस व्रत को रखने वाले को अश्वमेघ और राजसूय यज्ञों का फल प्राप्त होता है। वीर, पराक्रमी  और यशस्वी सन्तान प्राप्त होती है। यह व्रत पापनाशक, पुण्यदायी एवं मोक्ष दिलाने वाला है। 
    उत्पन्ना एकादशी का व्रत मार्गशीर्ष मास के कृष्ण एकादशी को रखा जाता है। इस व्रत के करने से सहस्त्र एकादशी का फल मिलता है। इस दिन दिया गया दान सहस्त्रगुना फल देता है। इसके महात्म्य  के श्रवण से सहस्त्र गोदान का फल प्राप्त होता है। इस व्रत को करने वाला और इसकी कथा को श्रवण करने वाला व्रती मोक्ष पाकर परमात्मा के चरणों में निवास करता है।
    जया एकादशी का व्रत माघ मास के शुक्लपक्ष में किया जाता है। इस श्रद्धा भाव से विष्णु का पूजन करते हैं। इसके करने से भूत-प्रेत आदि की योनि प्राप्त नहीं होती है। पाप नष्ट हो जाते हैं और अन्त समय में मोक्ष प्राप्त होता है।
    आंवल एकादशी का व्रत फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाता है। इस दिन आंवले के वृक्ष का पूजन किया जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इसके वृक्ष में भगवान्‌ विष्णु का निवास होता है। यह व्रत पापनाशक, पुण्यदायी, मोक्षदायी, सहस्त्र गोदान के तुल्य फल देने वाली है। इसके करने से दुःखों से मुक्ति एवं शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।
    परमा एकादशी पितरों की शान्ति एवं जन्म-मृत्यु के बन्धनों से मुक्ति पाने के लिए की जाती है। इसको अधिक मास में करने का विधान है। इस मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी में रखा जाता है। इस दिन विष्णु पुराण का पाठ करने से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। समस्त तीर्थों एवं गंगास्नान का पुण्यफल प्राप्त होता है।
    पद्मिनी एकादशी का व्रत भी मलमास के शुक्लपक्ष की एकादशी को रखा जाता है। इसके करने से कई जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। पुण्यवर्धक, शत्रुहन्ता एवं समस्त भय से मुक्ति दिलाती है। मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और धन-धान्य की पूर्णता मिलती है।
    अनन्त चतुर्दशी का व्रत कष्ट व पाप मुक्ति होकर एवं अनेक पुण्य फलों की प्राप्ति के लिए किया जाता है। इस दिन विष्णु जी के पूजन के बाद गोदान, शय्या दान, अन्नदान करके विप्रों को भोजन कराना चाहिए। मनोकांक्षाएं पूर्ण होने के साथ-साथ ईशकृपा प्राप्त होती है।
    बैकुण्ठ चतुर्दशी का व्रत सांसारिक बन्धनों से छूटने एवं परलोक सुधारने के लिए होता है। इस दिन शिव व विष्णु जी की उपासना करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
    रूप चौदस का व्रत जाने-अनजाने हुए पापों के प्रायश्चित के लिए किया जाता है। इसके करने से पापों का प्रायश्चित होता है और लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। इस दिन निर्धनों को भोजन कराने से और वस्त्र या कम्बल दान करने से या विद्यार्थियों को पुस्तकें दान करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती है और सभी पापों का प्रायश्चित होता है।(क्रमशः)  
 

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