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व्रत क्यों और किसलिए(भाग-5)

>> Saturday, March 26, 2011

    
  
    व्रत धार्मिक अनुष्ठान को पूरा करने के लिए संकल्प लेना।  एक प्रकार से व्रत को पूजादि से जुड़ा हुआ धार्मिक कृत्य माना गया है। व्रत करने वाले को प्रतिदिन स्नान, अल्पाहार, देवों का सम्मान, इष्टदेव के मन्त्रों का मानस जप व उनका ध्यान करना चाहिए। उनकी पूजा-अर्चना करनी चाहिए। इसमें होम व दान भी करना चाहिए। पूर्व की चर्चा को आगे बढ़ाते अब अन्य व्रतों की चर्चा करेंगे।
    मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन यह व्रत रखा जाता है और इस दिन भगवान्‌ सत्य-नारायण का यथाशक्ति पूजन, व्रत और कथा करने से वर्ष भर घर में सुख-शान्ति बनी रहती है। इस मास की महिमा श्रीकृण जी ने गीता के दसवें अध्याय में अपने मुख से की है।
    शरद पूर्णिमा का व्रत मनोकामना पूर्ति एवं सन्तान के मंगल के लिए किया जाता है। यह आश्विन मास की शुक्लपक्ष की पूर्णिमा को किया जाता है। इस रात्रि में सोलह कलाओं से परिपूर्ण चन्द्रमा अपनी अमृतमयी रश्मियों को धरा पर बिखेरता है। श्रीकृष्ण ने इसी दिन को रासोत्सव के लिए निर्धारित किया है। इस दिन माताएं अपनी सन्तान की मंगलकामना के लिए व्रत रखती हैं और देवी-देवताओं की पूजा करती हैं। मात्र इसी रात्रि को चन्द्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है।
    गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा का व्रत आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह व्रत गुरु के प्रति सम्मान, श्रद्धा एवं आस्था प्रकट करने के लिए रखा जाता है। इस दिन गुरु की पूजा करने से अज्ञान का अंधेरा छंटता है। गुरु अर्थात्‌ गु-अंधेरा और रु-मिटाने वाला। जो अज्ञानता के अंधकार को मिटा दे वही सच्चा गुरु होता है।
    वैशाख शुक्ल पूर्णिमा अत्यन्त पावन मानी जाती है। इस दिन दान, धर्म, जप, स्नानादि पुण्य कार्य करने से महान पुण्यफल की प्राप्ति होती है। इस दिन एक समय भोजन करके श्री सत्यनारायण का व्रत रखने से सुख-समृद्धि बढ़ती है।
    माघ पूर्णिमा का व्रत माघ शुक्ल पूर्णिमा को रखा जाता है। इस दिन सत्यनारायण पूजन, व्रत, कथा आदि करने से पुण्यफल की प्राप्ति होती है एवं मनोकामना की पूर्ति होती है।
    फाल्गुन पूर्णिमा का व्रत फाल्गुन मास की शुक्ल पूर्णिमा को किया जाता है। इस दिन होलिका दहन एवं होलिका व्रत भी किया जाता है। व्रती होलिका दहन के उपरान्त अपने व्रत को पूर्ण करके भोजन करता है। यह व्रत भी पुण्यफल एवं मनोकामना पूर्ति के लिए किया जाता है।
    कार्तिक पूर्णिमा का व्रत कार्तिक मास की शुक्ल पूर्णिमा को किया जाता है। इस दिन गंगा स्नान करने का विशेष महत्व है। इस दिन गंगास्नान करने से पापों से मुक्ति मिलती है। गंगास्नान के उपरान्त श्रीसत्यनारायण जी की ंकथा सुनने से पुण्य फल की प्राप्ति एवं मनोकामना की पूर्ति होती है।
    कोकिला व्रत आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को किया जाता है। यह व्रत स्त्रियां परिवार में सुख-समृद्धि, सुन्दरता एवं सुसन्तान पाने हेतु रखती हैं। यह व्रत आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से प्रारम्भ करके श्रावण मास की शुक्लपक्ष की पूर्णिमा तक किया जाता है।
    श्रावण कृष्ण अमावस को हरियाली अमावस कहते हैं। इस दिन सात्विक भाव से तीर्थ पर स्नान करके अन्न वस्त्र, धन का दान करने से एवं विप्रों को भोजन कराने से पितृ प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं और ऐसा करने जीवन सुख-समृद्धि से परिपूर्ण रहता है।
    मौनी अमावस माघ मास में मनायी जाती है। यह तिथि श्राद्ध, तर्पण आदि समस्त पितृ कार्यों के लिए शुुभ होती है। इस दिन मौन रहने से समस्त पापों का प्रायश्चित एवं पुण्यफल की प्राप्ति होती है।
    मकर संक्रान्ति का पर्व माघ मास में जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है उस दिन मनाया जाता है। सूर्य के उत्तरायण होने को मकर संक्रान्ति कहते हैं। इस दिन दान-पुण्य, गंगास्नान एवं व्रत रखने से जन्म-मरण के बन्धनों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन सूर्य उपासना की अपनी महत्ता है। भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था। उन्होंने सूर्य के उत्तरायण होने के लिए छब्बीस दिनों तक बाणों की शय्या पर प्रतीक्षा की थी।
    अन्य व्रतों की चर्चा कल करके आपका ज्ञानवर्धन करेंगे।(क्रमशः)   

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