व्रत क्यों और किसलिए(भाग-6)
>> Sunday, March 27, 2011
व्रत धार्मिक अनुष्ठान को पूरा करने के लिए संकल्प लेना। एक प्रकार से व्रत को पूजादि से जुड़ा हुआ धार्मिक कृत्य माना गया है। व्रत करने वाले को प्रतिदिन स्नान, अल्पाहार, देवों का सम्मान, इष्टदेव के मन्त्रों का मानस जप व उनका ध्यान करना चाहिए। उनकी पूजा-अर्चना करनी चाहिए। इसमें होम व दान भी करना चाहिए। पूर्व अंक की चर्चा को आगे बढ़ाते हैं हुए अब अन्य व्रतों की चर्चा करेंगे।
वैशाख संक्रान्ति परम पवित्र पर्व है। इस दिन भगवान् सूर्य अपनी उच्च राशि मेष में प्रवेश करते हैं। इस दिन पवित्र तीर्थों में स्नान, दान, पूजा आदि करने से महापुण्य के फल की प्राप्ति होती है। इस दिन दान एवं गंगा में स्नान अवश्य करना चाहिए।
जीवात्पुत्रिका व्रत पुत्र की रक्षा और उनकी दीर्घायु के लिए रखा जाता है। यह व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन रखा जाता है। यदि पुत्र की कुण्डली में अल्पायु योग हो तो उसका प्रभाव भी इस व्रत के करने से मिट जाता है और उसे पूर्ण आयु प्राप्त होती है। जिनके पुत्र होते हैं और जीवित नहीं रहते हैं, यदि वे भी इस व्रत को रखती हैं तो उनके पुत्र भी जीवित रहने लगते हैं।
अरुन्धती व्रत बाल वैधव्य को दूर करने के लिए रखा जाता है। महर्षि कर्दम की पुत्री व ऋषि वसिष्ठ की पत्नी अरुन्धती के नाम से इस व्रत का नामकरण हुआ। स्कन्दपुराण के अनुसार यह व्रत चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से प्रारम्भ होकर तृतीया तक तीन दिन चलता है। प्रतिपदा को स्नान करके व्रत का संकल्प लेकर कहें-हे माता मेरा सौभाग्य अखण्ड रहे और मुझे कई जन्मों के बाल वैधव्य के दुःख से मुक्ति मिले। दूसरे दिन द्वितीया को ध्रुव, वसिष्ठ व अरुन्धती की स्वर्ण या मिट्टी की प्रतिमा धान का ढेर बनाकर उसके ऊपर कलश रखकर उस पर तीनों प्रतिमा स्थापित करके षोडशोपचार से पूजन करें। तीसरे दिन शिव व पार्वती का पूजन करके व्रत को तोड़ें और विप्रों को भोजन कराकर श्रद्धानुसार दान दें या उन मूर्तियों का दान दे दें। यदि मिट्टी की मूर्तियां बनाएं तो उसको जल में विसर्जित कर दें।
कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को धन्वंतरि जयन्ती एवं धन त्रयोदशी मनाने का विधान है। इस दिन बर्तन, सोना व चांदी आदि नई वस्तुओं को खरीदने का विधान है। कहते हैं इस दिन धन का अपव्यय रोकने से अगले वर्ष में धन का संचय होता है। इसलिए लोग इस दिन लेनदेन से बचते हैं। इस दिन प्रदोषकाल में घर के बाहर यम के लिए दीपदान करने से घर के सदस्यों को अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। इस दिन यम देवता की पूजा करने से प्रगति का मार्ग प्रशस्त होता है।
दीपावली व लक्ष्मी पूजन कार्तिक कृष्ण अमावस को किया जाता है। इस दिन धन वैभव की प्राप्ति के लिए लक्ष्मी गणेश का पूजन बहुत भक्तिभाव से किया जाता है। लक्ष्मी उपासना से लक्ष्मी जी की कृपा बनी रहती है।
गोवर्धन पूजा या अन्नकूट पूजा श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने व गोवंश की रक्षा के लिए किया जाता है। यह पर्व कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है। गोवर्धन पूजा से परिवार में धन व धान्य की वृद्धि हाती है और शनि पीड़ा से छुटकारा मिलता है।
शारदीय नवरात्र में दुर्गा आराधना की जाती है, इससे सुख, शान्ति व वैभव की प्राप्ति होती है। नवरात्र दो बार मनाए जाते हैं, एक चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक बसन्त नवरात्र और आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक शारदीय नवरात्र मनाए जाते हैं। नवरात्रि के व्रत महासिद्धि देने वाले होते हैं।
भीष्म पंचक व्रत पापों से मुक्ति एवं पुत्र व पौत्रादि प्राप्त करने के लिए किया जाता है। यह व्रत कार्तिक शुक्ल एकादशी से प्रारम्भ करके पूर्णिमा को समापत होता है। यह व्रत धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रदाता है।
कपर्दि विनायक व्रत मनोकामनाएं पूर्ण करने के लिए श्रावण मास के शुक्ल चतुर्थी से भाद्रपद मास की शुक्ल चतुर्थी तक एक मास का कपर्दि विनायक का व्रत किया जाता है। इसमें एक समय भोजन किया जाता है। व्रती की मनोकामनाएं पूर्ण होती है। इसमें गणेश जी की उपासना की जाती है।
वैशाख संक्रान्ति परम पवित्र पर्व है। इस दिन भगवान् सूर्य अपनी उच्च राशि मेष में प्रवेश करते हैं। इस दिन पवित्र तीर्थों में स्नान, दान, पूजा आदि करने से महापुण्य के फल की प्राप्ति होती है। इस दिन दान एवं गंगा में स्नान अवश्य करना चाहिए।
जीवात्पुत्रिका व्रत पुत्र की रक्षा और उनकी दीर्घायु के लिए रखा जाता है। यह व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन रखा जाता है। यदि पुत्र की कुण्डली में अल्पायु योग हो तो उसका प्रभाव भी इस व्रत के करने से मिट जाता है और उसे पूर्ण आयु प्राप्त होती है। जिनके पुत्र होते हैं और जीवित नहीं रहते हैं, यदि वे भी इस व्रत को रखती हैं तो उनके पुत्र भी जीवित रहने लगते हैं।
अरुन्धती व्रत बाल वैधव्य को दूर करने के लिए रखा जाता है। महर्षि कर्दम की पुत्री व ऋषि वसिष्ठ की पत्नी अरुन्धती के नाम से इस व्रत का नामकरण हुआ। स्कन्दपुराण के अनुसार यह व्रत चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से प्रारम्भ होकर तृतीया तक तीन दिन चलता है। प्रतिपदा को स्नान करके व्रत का संकल्प लेकर कहें-हे माता मेरा सौभाग्य अखण्ड रहे और मुझे कई जन्मों के बाल वैधव्य के दुःख से मुक्ति मिले। दूसरे दिन द्वितीया को ध्रुव, वसिष्ठ व अरुन्धती की स्वर्ण या मिट्टी की प्रतिमा धान का ढेर बनाकर उसके ऊपर कलश रखकर उस पर तीनों प्रतिमा स्थापित करके षोडशोपचार से पूजन करें। तीसरे दिन शिव व पार्वती का पूजन करके व्रत को तोड़ें और विप्रों को भोजन कराकर श्रद्धानुसार दान दें या उन मूर्तियों का दान दे दें। यदि मिट्टी की मूर्तियां बनाएं तो उसको जल में विसर्जित कर दें।
कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को धन्वंतरि जयन्ती एवं धन त्रयोदशी मनाने का विधान है। इस दिन बर्तन, सोना व चांदी आदि नई वस्तुओं को खरीदने का विधान है। कहते हैं इस दिन धन का अपव्यय रोकने से अगले वर्ष में धन का संचय होता है। इसलिए लोग इस दिन लेनदेन से बचते हैं। इस दिन प्रदोषकाल में घर के बाहर यम के लिए दीपदान करने से घर के सदस्यों को अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। इस दिन यम देवता की पूजा करने से प्रगति का मार्ग प्रशस्त होता है।
दीपावली व लक्ष्मी पूजन कार्तिक कृष्ण अमावस को किया जाता है। इस दिन धन वैभव की प्राप्ति के लिए लक्ष्मी गणेश का पूजन बहुत भक्तिभाव से किया जाता है। लक्ष्मी उपासना से लक्ष्मी जी की कृपा बनी रहती है।
गोवर्धन पूजा या अन्नकूट पूजा श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने व गोवंश की रक्षा के लिए किया जाता है। यह पर्व कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है। गोवर्धन पूजा से परिवार में धन व धान्य की वृद्धि हाती है और शनि पीड़ा से छुटकारा मिलता है।
शारदीय नवरात्र में दुर्गा आराधना की जाती है, इससे सुख, शान्ति व वैभव की प्राप्ति होती है। नवरात्र दो बार मनाए जाते हैं, एक चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक बसन्त नवरात्र और आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक शारदीय नवरात्र मनाए जाते हैं। नवरात्रि के व्रत महासिद्धि देने वाले होते हैं।
भीष्म पंचक व्रत पापों से मुक्ति एवं पुत्र व पौत्रादि प्राप्त करने के लिए किया जाता है। यह व्रत कार्तिक शुक्ल एकादशी से प्रारम्भ करके पूर्णिमा को समापत होता है। यह व्रत धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रदाता है।
कपर्दि विनायक व्रत मनोकामनाएं पूर्ण करने के लिए श्रावण मास के शुक्ल चतुर्थी से भाद्रपद मास की शुक्ल चतुर्थी तक एक मास का कपर्दि विनायक का व्रत किया जाता है। इसमें एक समय भोजन किया जाता है। व्रती की मनोकामनाएं पूर्ण होती है। इसमें गणेश जी की उपासना की जाती है।
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