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कन्या के विवाह में विलम्ब हो रहा हो तो यह प्रयोग करके देखें!

>> Thursday, March 3, 2011


          
   
        आजकल मातापिता इस बात से परेशान रहते हैं कि कन्या का विवाह कैसे करें? बहुत प्रयास करने के बाद भी विवाह नहीं हो पाता है। जितने भी रिश्ते देखते हैं वहां बात नहीं बनती है और यदि कुछ सम्भावना दिखाई पड़ती है तो दूसरी ओर से कोई जवाब नहीं मिलता है। ऐसे में मातापिता व कन्या अपने विवाह के लिए उपाय पूछती है। आयु बढ़ती जाए और विवाह न हो तो चिन्ता बढ़ती जाती है। ऐसे में किसी योग्य दैवज्ञ को जन्मपत्री दिखाकर सलाह लेनी चाहिए।
        पार्वती मंगल पुस्तक बाजार से खरीदकर इसका नित्य तबतक पाठ करना चाहिए जब तक की मनोकांक्षा पूर्ण नहीं हो जाती है। यह पाठ अल्पतम 76दिन बिना नागा करना अवश्य करना चाहिए।
        यदि उक्त पाठ से भी कार्य न बने तो यहां एक प्रयोग लिख रहे हैं इसे करना चाहिए।
        मनोवांछित वर प्राप्ति व शीघ्र विवाह के लिए कुमारी कन्याओं को प्रतिदिन माता पार्वती के चित्र का चन्दन-पुष्प से पूजन करके अधोलिखित मन्त्र की 11माला का जाप करना चाहिए। यदि 11 माला नहीं कर सकते हैं तो अल्पतम पांच माला अवश्य करनी चाहिएं।
        हे गौरि शंकरार्धाङ्गि यथा त्वं शंकरप्रिया। तथा मां कुरु कल्याणि कान्तकान्तां सुदुर्लभाम्‌॥
        रामचरित मानस(1/235/5से 236तक)  के इस अंश का प्रतिदिन इसका एक बार करना चाहिए-
        जय जय गिरिबरराज किसोरी ।  जय महेश मुख  चंद  चकोरी ॥
        जय  गजबदन  षडानन  माता। जगत जननि दामिनी दुति गाता ॥
        नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना॥
        भव भव बिभव पराभव कारिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि॥
        पतिदेवता सुतीय महुँ मातु प्रथम तव रेख। महिमा अमित न सकहिं कहि सहस सारदा सेष॥
        सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायनी पुरारि पिआरी॥
        देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे॥
        मोर मनोरथु जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबही कें॥
        कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं। अस कहि चरन गहे बैदेहीं॥
        बिनय प्रेम बस भई भवानी। खसी माल मूरति मुसकानी॥
        सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ। बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ॥
        सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मनकामना तुम्हारी॥
        नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा॥
        मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर साँवरो। करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो॥
        एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय सहित हियँ हरषीं अली। तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चली॥
        जानि गौरि अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि। मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे॥
                           





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