महत्त्वाकांक्षाएं सफलता व उन्नति का द्वार खोलती है!
>> Tuesday, April 12, 2011
आकांक्षाओं के बिना जीवन व्यर्थ है। आकांक्षाएं न हों तो जीवन में उन्नति का मार्ग ही रुक जाता है। आज विश्व का जो भी विकसित स्वरूप दिखाई दे रहा है वह अनेक व्यक्तियों की आकांक्षाओं का प्रतिफल है।
आकांक्षा रहित जीवन जड़ सदृश है। आकांक्षा ही शोध कराती है और नए वैज्ञानिक शोधों का द्वार भी आकांक्षाओं के कारण खुलता है। व्यक्ति की आकांक्षाएं ही उसे महत्त्वाकांक्षी बनाती हैं। महत्त्वाकांक्षी होना अच्छा है, किन्तु अति महत्त्वाकांक्षी नहीं होना चाहिए।
आकांक्षा किसी भी महा आदर्श को जन्म देती है और उसको साकार करने के लिए साहस एवं कर्मठता का संयोग होना अत्यावश्यक है। जिसके पास सन्तुलित मन, जागरूक चेतना, विवेक सम्मत बुद्धि है उसके समक्ष आश्चर्यजनक सफलता का द्वार खुल जाता है।
आकांक्षाएं सार्थक एवं जनोपयोगी होंगी तो महत्त्वाकांक्षा उत्तम होगी। विकृत विचारों से पोषित व पल्लवित आकांक्षा सदैव दु:ख एवं तनाव का कारण बनती है क्योंकि ऐसे में महत्त्वाकांक्षा भी निम्नगामी हो जाती है। श्रेष्ठता की ओर ले जाने वाली महत्त्वाकांक्षा ही श्रेष्ठ होती हैं। निकृष्ट महत्त्वाकांक्षाओं को स्वीकृति नहीं देनी चाहिए उन्हें सदैव त्यागना या नकारना चाहिए। यदि आपने अपनी आकांक्षाओं का शोधन करके उत्तम महत्त्वाकांक्षा को स्वीकार किया तो आप जीवन में सफलता व उन्नति पथ पर अग्रसर होने के उपरान्त पीछे मुड़कर नहीं देखेंगे।
आकांक्षा रहित जीवन जड़ सदृश है। आकांक्षा ही शोध कराती है और नए वैज्ञानिक शोधों का द्वार भी आकांक्षाओं के कारण खुलता है। व्यक्ति की आकांक्षाएं ही उसे महत्त्वाकांक्षी बनाती हैं। महत्त्वाकांक्षी होना अच्छा है, किन्तु अति महत्त्वाकांक्षी नहीं होना चाहिए।
आकांक्षा किसी भी महा आदर्श को जन्म देती है और उसको साकार करने के लिए साहस एवं कर्मठता का संयोग होना अत्यावश्यक है। जिसके पास सन्तुलित मन, जागरूक चेतना, विवेक सम्मत बुद्धि है उसके समक्ष आश्चर्यजनक सफलता का द्वार खुल जाता है।
आकांक्षाएं सार्थक एवं जनोपयोगी होंगी तो महत्त्वाकांक्षा उत्तम होगी। विकृत विचारों से पोषित व पल्लवित आकांक्षा सदैव दु:ख एवं तनाव का कारण बनती है क्योंकि ऐसे में महत्त्वाकांक्षा भी निम्नगामी हो जाती है। श्रेष्ठता की ओर ले जाने वाली महत्त्वाकांक्षा ही श्रेष्ठ होती हैं। निकृष्ट महत्त्वाकांक्षाओं को स्वीकृति नहीं देनी चाहिए उन्हें सदैव त्यागना या नकारना चाहिए। यदि आपने अपनी आकांक्षाओं का शोधन करके उत्तम महत्त्वाकांक्षा को स्वीकार किया तो आप जीवन में सफलता व उन्नति पथ पर अग्रसर होने के उपरान्त पीछे मुड़कर नहीं देखेंगे।
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