यह ब्‍लॉग आपके लिए है।

ज्ञानेश्‍वर राशिफल 2026

ज्ञानेश्‍वर राशिफल 2026
पुस्तक खरीदने के लिए टाईटिल पर क्लिक करें।

स्‍वागत् है!

आपका इस ब्‍लॉग पर स्‍वागत है! यह ब्‍लॉग ज्‍योतिष, वास्‍तु एवं गूढ वि़द्याओं को समर्पित है। इसमें आपकी रुचि है तो यह आपका अपना ब्‍लॉग है। ज्ञानवर्धन के साथ साथ टिप्‍पणी देना न भूलें, यही हमारे परिश्रम का प्रतिफल है। आपके विचारों एवं सुझावों का स्‍वागत है।

कुण्डली और योग(भाग-6)-पं. यायावर

>> Wednesday, June 30, 2010


एक से अधिक ग्रह की युति होती है तो योग बनता है। योग कई प्रकार के होते हैं-आश्रय योग, दल योग, आकृति योग, संख्या योग आदि। इस लेख में कुछ योगों की चर्चा करेंगे जिनको आप अपनी कुण्डली में देखकर फल विचार कर सकते हैं। जिन ग्रहों से योग बनता है वे योग के कारक ग्रह होते हैं। योग का फल योगकारक दशाओं में मिलता है। आईए कुछ योगों को समझें। पूर्व पांच भागों में 55 योगों की चर्चा कर चुके हैं, अब आगे!
तीन सौ ज्योतिष योग
56. गजकेसरी योग-चन्द्रमा से केन्द्र स्थान 1, 4, 7, 10 में गुरु स्थित हो तो यह योग होता है।
फल-इस योग में उत्पन्न जातक तेजस्वी, धन-धान्य से युक्त, मेधावी, गुणी एवं राजप्रिय होता है। जातक केसरी(शेर) सदृश निज शत्रुओं को नष्ट करता है। ऐसा व्यक्ति सभाओं में प्रौढ़ भाषण करने वाला, राजसिक वृत्ति वाला, दीर्घायु, तीव्र बुद्धि, महा यशस्वी और अपने स्वाभाविक तेज से ही दूजों को जीत लेता है। यहां योगकारक ग्रह चन्द्रमा एवं गुरु है। 
गजकेसरी योग कई प्रकार से बनता है, जैसे-
चन्द्रमा एवं गुरु की युति हो तो भी गजकेसरी योग होता है। 
फल-ऐसा जातक शक्तिशाली, प्रसिद्ध, बुद्धिमान, गुणवान, धनवान, चंचल मन वाला एवं प्रेम में समान रूप होता है।
चन्द्रमा से चतुर्थ में गुरु हो तो भी गजकेसरी योग होता है। 
फल-ऐसा जातक को घर का तथा माता का अच्छा सुख मिलता है। मानसागरी के अनुसार यह योग जातक को घर व माता के सुख से वंचित करता है और दूजों के लिए कार्य करने की मनोवृत्ति देता है।
चन्द्रमा से सप्तम में गुरु हो तो भी गजकेसरी योग होता है। 
फल-जातक का स्वास्थ्य उत्तम रहता है। वह दीर्घायु होता है। परिवार के सदस्यों द्वारा मान्य होता है। वह मितव्ययी होता है। मानसागरी के अनुसार जातक नपुंसक, पीलिया रोग से पीड़ित एवं वैवाहिक सुख प्राप्त करता है।
 चन्द्रमा से दशम में गुरु हो तो भी गजकेसरी योग होता है। 
फल-ऐसा जातक मनोनुकूल कार्य करता है। सम्मानित पद एवं धन प्राप्त करता है। प्रबल आदर्शवाद तथा आध्यात्मिकता में रुचि होती है। मानसागरी के अनुसार जातक पत्नी और बच्चों का परित्याग करके सन्यासी या सन्यासी सदृश हो जाता है। यह योग महात्मागांधी की कुण्डली में था।
चन्द्रमा एवं गुरु की युति पहले भाव में हो तो भी गजकेसरी योग होता है। 
फल-जातक देखने में सुन्दर, मित्रों, पति/पत्नी, सन्तान से युक्त होता है। जातक को स्वास्थ्य सुख मिलता हे, सम्मानित  होता है एवं सबको प्रभावित करता है।
चन्द्रमा एवं गुरु की युति चतुर्थ भाव में हो तो भी गजकेसरी योग होता है। 
फल-जातक राजा या मन्त्री होता है, विद्वान एवं उसक घर का पूर्ण सुख प्राप्त होता है।
चन्द्रमा एवं गुरु की युति सप्तम भाव में हो तो भी गजकेसरी योग होता है। 
फल-जातक विद्वान, कुशल, व्यवसायी, धनी, वैवाहिक सुख पाने वाला, भाग्यशाली एवं व्यवसाय में साझेदारी से धन प्राप्त करता है।
चन्द्रमा एवं गुरु की युति नवम भाव में हो तो भी गजकेसरी योग होता है। 
फल-जातक प्रतिष्ठित, भाग्यशाली, धनी और सन्तोषी होता है। भाग्य उत्तम होता है। जातक सत्कर्मी एवं धार्मिक कार्य करता है।
चन्द्रमा एवं गुरु की युति दसवें भाव में हो तो भी गजकेसरी योग होता है। 
फल-जातक विद्वान, धनी, अहंकारी, सम्मानित होता है। वह कर्म के क्षेत्र में उच्च पदस्थ एवं आर्थिक रूप से समृद्ध होता है।
57. सुनफा योग-सूर्य के अलावा चन्द्र से दूसरे भाव में कोई ग्रह हो तो सुनफा योग होता है। यहां योगकारक ग्रह मंगल, बुध, गुरु, शुक्र व शनि हैं।
फल-इस योग में उत्पन्न जातक राजा या राजा सदृश होता है। धनी, विख्यात एवं निज बाहुबल से धन उपार्जित करने वाला होता है। 
अन्य फलानुसार जातक धनी, निज भुजाओं से धन अर्जित करने वाला, धार्मिक, शास्त्रज्ञाता, यशस्वी, सुन्दर, गुणवान, शान्त स्वभाव, सुखी, राजा या मन्त्री एवं बुद्धिमान होता है।
यहां एक बार पुनः बता दें कि योग का फल योगकारक ग्रहों की दशा, अन्तर्दशा एवं प्रत्यन्तर दशा में होता है। फल कहते समय इसका भी ध्यान रखना चाहिए।

Read more...

वास्तु के अनमोल सूत्र-पं जटाशंकर चतुर्वेदी

>> Tuesday, June 29, 2010


     वर्तमान में कौन ऐसा है जो सुख-शान्ति न चाहता हो, सफलता न चाहता हो, धन सम्पन्न न होना चाहता हो, बाधा-रहित जीवन जीना चाहता हो। मेरे अनुसार सभी ऐसा चाहते हैं। आजकल घर बनाते समय वास्तु नियमों का ध्यान गृहस्वामी, कारीगरों, बिल्डरों एवं इंजीनियरों द्वारा रखा जाता है।  शतप्रतिशत वास्तु नियमों का पालन नहीं हो पाता है। लेकिन कुछ वास्तु के अनमोल सूत्र ऐसे हैं जिनको ध्यान में रखा जाए तो जीवन बाधा रहित, सुख-समृद्धि एवं शान्ति सम्पन्न हो सकता है। वास्तु सूत्रों के पालन से घर में सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न की जा सकती है।  वास्तु नियमों का ध्यान रखा जाए तो ये स्वतः उत्पन्न हो जाती है और घर में धन, सुख व समृद्धि का वास होने लगता है।
वास्तु के अनमोल सूत्र
     यह जान लें कि उत्तर, पूर्व एवं उत्तर-पूर्व(ईशान) अत्यन्त महत्वपूर्ण दिशाएं हैं। ये उन्नतिकारक व धनकारक हैं। अतः इन दिशाओं में पूर्ण स्वच्छता रखी जाए एवं अस्त-व्यस्तता न हो। ये दिशाएं हल्की, साफ एवं खुली होनी चाहिएं। यह स्थान पूजा एवं अध्ययन कक्ष के लिए सर्वोत्तम है।
कुछ भी सेवन करते समय मुख उत्तर-पूर्व या उत्तर की ओर होना चाहिए।
पूजा करते समय भी मुख उत्तर-पूर्व या उत्तर की ओर होना चाहिए।
नगदी जिस अलमारी में रखें वह दक्षिण या दक्षिण-पूर्व कोने में होनी चाहिए। अलमारी का मुख सदैव उत्तर की ओर खुलना चाहिए।
सदैव दक्षिण की ओर सिर करके सोना चाहिए। पूर्व या उत्तरपूर्व की ओर सिर करके विद्यार्थी या पढ़ने वाले बच्चे सो सकते हैं, इससे स्मरण शक्ति अच्छी रहती है।
रसोईघर सदैव दक्षिण या दक्षिणपूर्व में बनाएं। गैस सदैव दक्षिण या दक्षिणपूर्व दिशा में जलाएं। रसोईघर में पानी सदैव उत्तर या उत्तरपूर्व में रखें। किचन में रात्रि में झूठे बर्तन न रखें। गैस के स्लैब पर पानी का प्रबन्ध कदापि नहीं करना चाहिए, वरना घर पर  अधिक क्लेश रहता है और पति-पत्नी के मध्य टकराहट रहती है। यहां तक परिवार का प्रत्येक सदस्य की सोच अलग होती है। 
उत्तर, पूर्व एवं उत्तर-पूर्व दिशा जल का सर्वोत्तम स्थान है। इन दिशाओं में खुलापन एवं जल की स्थापना अवश्य करनी चाहिए। आकाश तत्त्व की स्थापना के लिए भी यह सर्वोत्तम स्थान है।   
निराशा उत्पन्न करने वाले चित्रों व पेन्टिग को घर में नहीं लगाना चाहिए।
पूर्व व उत्तर को हल्का एवं खुला रखना चाहिए। भारी समान इन दीवारों के साथ नहीं लगाना चाहिए। यहां स्वच्छता की विशेष आवश्यकता है। ये दिशाएं नीची रखनी चाहिएं।
पश्चिम व दक्षिण दिशा को ऊंचा व भारी रखना चाहिए। इस दिशा की दीवारों के साथ भारी सामान रख सकते हैं।
कांटेदार पेड़ या पौधे घर में नहीं लगाने चाहिएं। ये घर में विवाद, बाधाएं व तनाव उत्पन्न करते हैं। 
तुलसी का पौधा उत्तर या पूर्व मे घर में अवश्य लगाना चाहिए। यह पौधा डेढ़ मीटर से अधिक ऊंचा नहीं होना चाहिए।
पूर्व या पूर्व-उत्तर में शौचालय या जीना कदापि नहीं होना चाहिए।
वास्तु का मुख्य लक्ष्य गृह में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाना है जोकि वास्तु नियमों के पालन से बढ़ायी जा सकती है। सकारात्मकता जीवन में उन्नति लाती है और श्रद्धा भावना व सकारात्मक विचार से इसे बढ़ाया जा सकता है। उक्त अनमोल सूत्रों से सुख-समृद्धि एवं सम्पन्नता बढ़ायी जा सकती है। आप करके देखें और लाभ हो तो दूजों को बताकर लाभ कराएं व प्रशंसा पाएं।

Read more...

कहीं आप थकान से चूर तो नहीं-डॉ. राजीव गुप्ता, एम.बी.बी.एस, एम.डी.

>> Monday, June 28, 2010


   क्या आपको रात में जी भरकर सो लेने के बाद भी अगले दिन मानसिक थकान, बदन में टूटन और शरीर बेजान सा तो नहीं लगता है। ऐसा है तो इसका कारण खोजिए।
थकान के मुख्य कारण 
   आपकी थकान का कारण थायरॉयड की गड़बड़ी जोकि अक्सर महिलाओं में देखने में आती है। इसका पता वजन घटते जाने, थकान महसूस होना, त्वचा में खुश्की, बार-बार सर्दी-जुकाम होना है। आप थायरॉयड चैक भी करा सकते हैं। 
    एनीमिया भी हो सकता है। यह भी अधिकतर महिलाओं को होता है। थकान का मुख्य कारण खून की कमी भी हो सकता है।
    डिप्रेशन भी इसका कारण हो सकता है। बिना जांच के ज्ञात नहीं होता है। कई बार पैतृक कारणों से भी होता है। अवसाद भी इसका एक कारण हो सकता है।
    पोषण की कमी से भी ऐसा हो सकता है। जब शरीर में विटामिन बी2, बी6, बी12, विटामिन ई, मैग्नेशियम और जिंक की कमी हो जाती है तो भी ऐसा हो सकता है।
    फूड एलर्जी भी हो सकती है। कुछ लोगों को गेहूं, जौ और ओट्स में मौजूद ग्लूटन से कोलिएक नामक बीमारी हो जाती है जिसमें थकान महसूस होती है।
    गलत जीवन शैली के कारण भी थकान महसूस होती है। जीवन शैली नियमित करने व उचित व्यायाम से इससे मुक्ति मिल सकती है।
     स्लीम एप्नीया भी इसका एक कारण हो सकता है। कई लोगों को ज्ञात ही नहीं होता कि उन्हें नींद के दौरान सांस टूटने का रोग है। इसलिए वे थकान  महसूस करते हैं।
    तनाव भी इसका एक कारण हो सकता है। शहरी जीवनयापन में जीवन जीने की शैली अस्त-व्यस्त है। यहां इस कारण तनाव अधिक हो जाता है और इस तनाव के कारण अधिकतर थकान व टूटन महसूस होती है। तनाव को अनावश्यक रूप से मत लें। जीवन को व्यवस्थित करने व सकारात्मक सोच से तनाव मुक्त हो सकते हैं। 
थकान को मात दें!
    सही खाना खाएं। ताजा फल और सब्जियों को अधिक मात्रा में सेवन करें। विटामिन से भरपूर व पोषक खुराक लेंगे तो थकान महसूस नहीं होगी। 
    प्यास अधिक लगती है तो उसे ऐसे न लें। तुरन्त पानी पी लें। पानी अधिक मात्रा में लें और प्यास लगने ही न दें। शरीर में पानी कम होने से भी थकान लगने लगती है।  तरल पदार्थ जूस, नारियल पानी, शिकंजी, छाछ या दूध के अतिरिक्त पानी अधिक मात्रा में लेते रहना चाहिए।
    प्रतिदिन छह से आठ घंटे की भरपूर नींद अवश्य लें। यदि ऐसा करने से थकान कम हो जाए तो नियमित नींद लें और यहां तक इसे आदत बना लें।
    कुछ लोग बेवजह तनाव को निमन्त्रण देते हैं। समय पर व्यवस्थित ढंग से कार्य करें व जीवन में व्यवस्था रखेंगे तो तनाव होगा ही नहीं। 
    फैमिली डॉक्टर से सलाह लेकर नियमित हैल्थ चैकअप अवश्य कराएं।
    यदि आपने ऐसा किया तो आप थकान से मुक्त हो जाएंगे। यदि फिर भी आप अपनी थकान से मुक्त नहीं हो पा रहे हैं तो अपने फैमिली डॉक्टर से अवश्य सलाह लें और कोई लापहरवाही न बरतें।

Read more...

चमत्कारिक महामृत्युंजय मन्त्र -पं.चैतन्य

>> Sunday, June 27, 2010


जब कोई व्यक्ति मृत्यु शय्या पर पड़ा होता है, किसी असाध्य रोग से पीड़ित होता है, ऊपरी प्रभाव या हवाओं से निरन्तर रोगग्रस्त रहता है या अचानक दुर्घटना के कारण मृत्यु की घड़ियां गिन रहा होता है तो कहते हैं कि महामृत्युंजय मन्त्र का पाठ करा लो। इससे मृत्यु भी टल जाती है।
चमत्कारिक महामृत्युंजय मन्त्र
जैन धर्म के पास णमोकार मन्त्र है, बौद्धों के पास ऊँ मणि पद्मे हुम्‌ मन्त्र है, सिक्खों के पास एक ओंकार सतनाम्‌ मन्त्र है, वैसे ही हिन्दुओं के पास गायत्री मन्त्र एवं महामृत्युंजय मन्त्र है।
मृत्यु मिट्टी सदृश है। पंचतत्वों से निर्मित यह देह मृत्तिका मात्र है।
मृत्युंजय का अर्थ है जिसने मृत्यु को जीत लिया हो।
शरीर मरता है, आत्मा नहीं वह तो अजर व अमर है। जिसने इस नश्वर शरीर में शाश्वत के दर्शन कर लिए और जीवन व मृत्यु के मध्य में, यश व अपयश के मध्य में, लाभ व हानि के मध्य जो अनासक्त भाव से जीवन जीता है वही मृत्युंजय है।
महामृत्युंजय मन्त्र अमृतमय है।
शुक्राचार्य मृतसंजीवनी विद्या के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं।  भृगु पुत्र शुक्राचार्य को कौन नहीं जानता? उन्होंने भगवान्‌ शिव से ही दीक्षा ली थी।
मार्कण्डेय भी इसी मृत्युंजय मन्त्रा से रक्षित होकर भगवान्‌ आशुतोष शिव से दीक्षा लेते हैं।
यमराज भी शिव भक्तों के मन्त्रमय तेजोमय मृत्युंजय रूप को प्रणाम करते हैं।
मन्त्रा के लिए कह सकते हैं कि वह मन व हृदय से निकली हुई सच्ची पुकार है। मन-त्रायते इति मंत्र। बार-बार बोलने से एक विशेष प्रकार की ध्वनि ऊर्जा निर्मित होती है। 108 बार मन्त्र बोलने से ध्वनि चक्र पूर्ण होता है। यह ध्वनि चक्र जितना अधिक निर्मित होता है उतना ही मन्त्र की शक्ति व प्रभाव बढ़ जाता है।
एक से पच्चीस लाख जप करने से यह मन्त्र अपने इष्टलोक तक पहुंचता है और इष्टदेव का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
ऐसे में साधक को सिद्धि मिलती है और उसके ओज-चक्र से एक आभा स्फुटित  होने लगती है। आजकल किरलियन फोटोग्राफी से ओज-चक्र देखा जा सकता है।
महामृत्युंजय मन्त्र के जाप से शरीर के मृत कोशिकाएं के स्थान पर नई कोशिकाओं का निर्माण होने लगता है।
यह सत्य है कि महामृत्युंजय मन्त्र के प्रभाव से मृत्य शरीर में चिन्मय के दर्शन होने लगते हैं। आवश्यकता है श्रद्धा, भक्ति व मनोयोग से ध्यान सहित मन्त्र जाप की। अनासक्त भाव से किया गया कर्म साधक को बांधता नहीं है। मन्त्र साधना अनासक्त भाव से जीने की कला है।
महामृत्युंजय मन्त्र इस प्रकार है-

ऊँ त्रयम्बकं यजामहे 
सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌।
उर्वारुकमिव बन्धनान्‌ 
मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्‌॥

अर्थात्‌ समस्त संसार के पालनहार तीन नेत्रों वाले शिव की हम आराधना करते हैं। विश्व में सुरभि फैलाने वाले भगवान्‌ शिव मृत्यु न कि मोक्ष से हमें मुक्ति दिलाएं।
यह जान लें कि त्रयम्बकं त्रैलोक्य शक्ति,  यजा सुगन्धात शक्ति, महे माया शक्ति, सुगन्धिं सुगन्धि शक्ति, पुष्टि पुरन्दिरी शक्ति,   वर्धनम्‌ वंशकरी शक्ति, उर्वा ऊर्ध्दक शक्ति,  रुक रुक्तदवती शक्ति, मिव रुक्मावती शक्ति, बन्धनान्‌ बर्बरी शक्ति, मृत्योः मन्त्रवती शक्ति, मुक्षीय मुक्तिकरी शक्ति, मा महाकालेश शक्ति एवं अमृतात्‌ अमृतवती शक्ति की द्योतक है। इसी प्रकार प्रत्येक वर्ण की अलग-अलग शक्ति होती है जो ब्रह्ममाण्ड में एवं शरीर में स्थित है जोकि ब्रह्माण्ड सदृश है।
मन्त्र ध्वनि से उठने वाली आवृत्ति इतनी शक्तिप्रद होती है जोकि रोगी या पीड़ित व्यक्ति को नीरोग करती है। यदि आप मन्त्र जाप करने में असमर्थ हैं तो उस मन्त्र को निरन्तर सुनकर भी कुप्रभाव से मुक्ति पा सकते हैं। यदि कर सकते हैं तो अत्यन्त प्रभावी और फलदायी है।

Read more...

बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला -बाबा ज्ञानदेव तपस्वी

>> Saturday, June 26, 2010




     आप भी बुरी नजर से परेशान हैं। चाहकर भी आप इससे मुक्त नहीं हो पा रहे हैं। बुरी नजर के कारण ही हानि उठानी पड़ रही है और व्यर्थ का शारीरिक कष्ट भी मिल रहा है। बेबात बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है। मानसिक अस्थिरता, वाद-विवाद, गृहक्लेश से जीवन का सुख न जाने कहां चला गया है। मन में यह सोचें कि कैसे इससे छुटकारा पाएं। यदि आप सोचते हैं कि यह सब आपके साथ बेबात हो रहा है तो समझ लें कि आप बुरी नजर से परेशान हैं। तब तो आपको कुछ ऐसा करना पड़ेगा जिससे यह हो जाए कि बुरी नजर वाले, तेरा मुंह काला।
बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला
      बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला। लेकिन कैसे हो? इसकी चर्चा यहां करेंगे। यहां कुछ प्रयोगों कि चर्चा करेंगे जिससे आप बुरी नजर की आपदाओं से बच सकें। बेबात की बाधा एवं कष्ट से दो चार न होना पड़े इसके लिए निम्नलिखित टोटकों को करके    देखें-
टोटका एक-यदि आपने कोई नया वाहन खरीदा है और आप इस बात से परेशान हैं कि कुछ न कुछ रोज वाहन में गड़बड़ी हो जाती है। यदि गड़बड़ी नहीं होती तो दुर्घटना में चोट-चपेट लग जाती है और बेकार के खर्च से सारी अर्थ-व्यवस्था चौपट हो जाती है।  अपने वाहन पर काले धागे से पीली कौड़ी बांधने से आप इस बुरी नजर से बच सकेंगे, करके परेशानी से मुक्त हो जाएं।
टोटका दो-यदि आपके घर पर रोज कोई न कोई आपदा आ रही है। आप इस बात को लेकर परेशान हैं कि कहीं किसी ने कुछ कर तो नहीं दिया। ऐसे में आपको चाहिए कि एक नारियल को काले कपड़े में सिलकर घर के बाहर लटका दें।
टोटका तीन-यदि आपके बच्चे को नजर लग गई है और हर वक्त परेशान व बीमार रहता है तो लाल साबुत मिर्च को बच्चे के ऊपर से तीन बार वार कर जलती आग में डालने से नजर उतर जाएगी और मिर्च का धचका भी नहीं लगेगा।
टोटका चार-यदि कोई व्यक्ति बुरी नजर से परेशान है तो कि शनिवार के दिन कच्चा दूध उसके ऊपर से सात बार वारकर कुत्ते को पिला देने से बुरी नजर का प्रभाव दूर हो जाता है।
टोटका पांच-आप अपने नए मकान को बुरी नजर से बचाना चाहते हैं तो  मुख्य द्वार की चौखट पर काले धागे से पीली कौड़ी बांधकर लटकाने से समस्त ऊपरी बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
टोटका छह-यदि कोई व्यक्ति बुरी नजर से परेशान है तो कि मंगलवार के दिन हनुमान मंदिर जाकर उनके कन्धे से सिन्दुर लेकर नजर लगे व्यक्ति के माथे पर यह सोचकर तिलक कर दें कि यह नजर दोष से मुक्त हो गया है।
टोटका सात-यदि आपके बच्चे को बार-बार नजर लग जाती है तो आपको चाहिए कि आप उसके गले में रीठे का एक फल काले धागे में उसके गले में पहना दें।
टोटका आठ-यदि आप नजर दोष से मुक्त होना चाहते हैं तो सूती कोरे कपड़े को सात बार वारकर सीधी टांग के नीचे से निकालकर आग में झोंक दें। यदि नजर होगी तो कपड़ा जल जाएगा व जलने की बदबू भी नहीं आएगी। यह प्रयोग बुधवार एवं शनिवार को ही कर सकते हैं।
टोटका नौ-यदि कोई बच्चा नजर दोष से बीमार रहता है और उसका समस्त विकास रुक गया है तो फिटकरी एवं सरसों को बच्चे पर से सात बार वारकर चूल्हे पर झोंक देने से नजर उतर जाती है। यदि यह सुबह, दोपहर एवं सायं तीनों समय करें तो एक ही दिन में नजर दोष दूर हो जाता है।
टोटका दस-यदि आपको लगता है कि आपका कार्य किसी ने बांध दिया है और चाहकर भी उसमें बढ़ोतरी नहीं हो रही है व सब तरफ से मन्दा एवं बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में आपको साबुत फिटकरी दुकान में खड़े होकर 31 बार वार दें और दुकान से बाहर निकल कर किसी चौराहे पर जाकर उत्तर दिशा में फेंक कर बिना पीछे देखें वापस आ जाएं। नजर दूर हो जाएगी और व्यापार फिर से पूर्व की भांति चलने लगेगा।
   यहां अनुभूत दस टोटके नजर बाधा को दूर करने के लिए दिए हैं। यदि आपको लगता है कि आप इससे परेशान हैं तो यह प्रयोग करके देखें आप इस बाधा से मुक्त हो जाएंगे। यदि दूजे भी परेशान दिखें तो निस्वार्थ भाव से उनके काम आएं और यह प्रयोग उन्हें भी बताकर पुण्य कमाएं।

Read more...

वास्तु सलाह अवश्य लें! - पं. ज्ञानेश्वर

>> Friday, June 25, 2010


    आजकल सम्पत्ति खरीदना या भूखण्ड खरीदना अत्यन्त महंगा हो गया है। भवन खरीदना हंसी खेल नहीं है। बहुतों का जीवन ही निकल जाता है और वे सेवा निवृत्त होने के बाद भी मकान नहीं बना पाते हैं। सारा जीवन बिना अपने मकान के व्यतीत कर देते हैं। उनकी मनोंकांक्षा मन में ही रह जाती है, वे चाहकर भी मकान नहीं बना पाते हैं। कुछ बना लेते हैं लेकिन वे सेवा समाप्त करने के बाद ही जो पैसा मिलता है उससे बनाते हैं। जब भवन इतना कीमती हो तो उसे बनाने से पूर्व वास्तु सलाह अवश्य लेनी चाहिए।
वास्तु सलाह क्यों लें?
    वास्तु सलाह इसलिए लेनी चाहिए क्योंकि प्रत्येक यही चाहता है कि वह सुख संग जीवन जिए और उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण हों, उसका जीवन बाधा रहित न हो। 
    यह तो आप भी जानते हैं कि सही ढंग से न किया गया कार्य व्यर्थ ही जाता है और उसके लिए किया गया श्रम भी व्यर्थ हो जाता है।
    भवन बनाते समय वास्तु सलाह इस लिए आवश्यक है क्योंकि रोग व बाधाकारी भवन जीवन को नष्ट कर देता है। 
    यदि आपका भवन वास्तु-सम्मत नहीं है तो आप सुखकारी एवं बाधारहित जीवन नहीं जी पाएंगे।
    यह तो सब जानते हैं कि कोई घर इतना भाग्यशाली होता है कि उसमें रहते ही वारे-न्यारे हो जाते हैं और जीवन को एक दिशा मिल जाती है। सारे कार्य चुटकियों में बन जाते हैं। समस्त दिशाओं से लाभ एवं सबका सहयोग मिलता जाता है। सपनों से भी अधिक मिल जाता है। यह सब अच्छे भवन एवं सुभाग्य वश ही होता है।
जब सब काम बनें, काइ रुकावट न आए तो समझ लें कि आपके ग्रह अच्छे चल रहे हैं, ग्रहदशा अच्छी है। आप अच्छे भवन में निवास कर रहे हैं। तभी तो आप चहुंमुखी विकास एवं चारों दिशाओं से लाभ  पाते हैं।  
वास्तु है क्या बला?
    वास्तु कोई बला नहीं है, एक ज्ञान है जो विशिष्ट ज्ञान है। इसमें दिशाओं के अनुकूल भवन में निर्माण होता है जिससे जीवन में सबकुछ सहज होता है और उन्नतशील होता है। 
    आपको इतने महंगे भवन को बनाने से पहले वास्तुविद से सलाह अवश्य लेनी चाहिए। अब लोग ऐसा करने भी लगे हैं। वे भवन में आने वाली लागत में वास्तु सलाह का बजट भी जोड़ने लगे हैं।
    वास्तु सलाहकार आपको यह बताता है कि दस दिशाओं (पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, उत्तर-पूर्व, उत्तर-पश्चिम, दक्षिण-पश्चिम, दक्षिण-पूर्व, आकाश, पाताल) से कैसे भरपूर लाभ होगा।
    इसके लिए वह आपके भवन में इस प्रकार निर्माण कराएगा कि वह वास्तु के अनुसार होगा। दिशा के अनुरूप       भवन बनाने से जीवन में सुख, धन, सम्मान एवं सुअवसर आते हैं, बाधाएं आती नहीं है और यदि आ भी जाती हैं तो स्वतः दूर होने का मार्ग निकाल लेती हैं।   
    यह भली-भांति जान लें कि पूर्व एवं उत्तर दिशा हल्की एवं खुली होनी चाहिएं। इस दिशा में जल को स्थान देना चाहिए। देवता को स्थान देना चाहिए। 
    देवता के लिए पूर्व-उत्तर दिशा सर्वोत्तम है, उत्तर एवं पूर्व भी शुभ होती है। ईशान में भवन का देवता वास करता है, इसलिए इस स्थान पर पूजा या देवस्थल अवश्य बनाना चाहिए। इसे खुला और हल्का बनाना चाहिए। इसमें स्टोर या वजन रखने का स्थान कदापि नहीं बनाना चाहिए। इस स्थान को साफ रखना चाहिए। इस स्थान को प्रतिदिन साफ रखने से जीवन उन्नतिशील एवं सुख-समृद्धि से परिपूर्ण होता है। 
    किचन दक्षिण या दक्षिण पूर्व में बनानी चाहिए। किचन में सिंक या हाथ धोने का स्थान ईशान कोण में होना चाहिए। रात्रि में किचन में झूठे बर्तन नहीं होने चाहिएं। यदि शेष रहते हैं तो एक टोकरे में भरकर किचन से बाहर आग्नेय कोण में रखने चाहिएं। पीने योग्य जल का भंडारण भी ईशान कोण में होना चाहिए। यह ध्यान रखें कि कभी भी आग्नेय कोण में जल का भंडारण न करें। गैस के स्लैब पर पानी का भंडारण तो कदापि न करें, वरना गृहक्लेश अधिक होगा। पारिवारिक सदस्यों में वैचारिक मतभेद होने लगेंगे। गृहक्लेश अधिक होता है तो किचन में चैक करें अवश्य जल और अग्नि एक साथ होंगे। अथवा ईशान कोण में वजन अधिक होगा या वह अधिक गंदा रहता होगा। गीजर या माइक्रोवेव ओवन आग्नेय कोण के निकट ही होने चाहिएं। इसी प्रकार मिक्सी, आटा चक्की, जूसर आदि भी आग्नेय कोण में दक्षिण दिशा की ओर रखने चाहिएं। यदि किचन में रेफ्रीजिरेटर भी रख रहे हैं तो उसे सदैव आग्नेय, दक्षिण या पश्चिम की ओर रखें। ईशान या नैर्ऋत्य कोण में कदापि नहीं रखना चाहिए। यदि रखेंगे तो परिवार में वैचारिक मतभेद अधिक रहेंगे और कोई किसी की सुनेगा नहीं।
     आप वास्तु सम्मत भवन बनाने के लिए वास्तुसलाह अवश्य लें क्योंकि जीवन में जो चाह आपकी है उसमें पूर्णता तभी आएगी जब आप समुचित ढंग से उसके लिए सक्रिय होंगे। वास्तु इस दिशा में सहयोगी का कार्य निभाता है। 

Read more...

पुलिस-सेना के ज्‍योतिष के योग -रतन लाल शर्मा(ज्‍योतिष

>> Thursday, June 24, 2010


      प्रस्तुत कुंडली ऐसे जातक की है जो मेरे ही गांव चांदसेन तहसील लालसोट का है, इसका जन्म दिनांक 13.1.1976 को प्रातः  1.48 पर लालसोट में हुआ। तुला लग्न में उत्पन्न यह जातक दिनांक 3.11.77 से राजकीय सेवा में सब इन्सपेक्टर, राजस्थान पुलिस पद पर पुलिस अकादमी जयपुर में नियुक्त है। जातक को इस क्षेत्र में जाने के लिए किन ग्रहों का योगदान रहा खोजते हैं।

       जातक की कुण्डली का विश्लेषण करें तो निम्नलिखित बातें स्पष्ट होती हैं-
1. तीसरे भाव में क्रूर ग्रह सूर्य स्थित है जिस पर मंगल की पूर्ण दृष्टि है जो जातक को साहसी बनाती है। 
2. तृतीयेश गुरु की दशम भाव पर पूर्ण  दृष्टि है, जो पुलिस अधिकारी बनाने में सक्षम है। 
3. षष्ठ भाव संघर्ष एवं स्पर्धा का है एवं इससे गुरु का सम्बन्ध होना जातक को अनुशासन एवं न्यायप्रिय बनाकर कर्त्तव्यनिष्ठ पुलिस अधिकारी बनाता है।  
4. दशमेश चन्द्र की मंगल से युति जातक को पुलिस से आजीविका दिलाती है। 
5. तृतीयेश का षष्ठ भाव में होना जातक को शत्रु पर विजय पाने की क्षमता देता है। कुण्डली में तृतीयेश गुरु षष्ठ भाव में स्थित है।
6. दशम भाव से मंगल या शनि का सम्बन्ध होने पर जातक पुलिस में नौकरी पाता है। 
इस कुण्डली के दशम भाव में शनि स्थित है और दशम चन्द्र का मंगल के साथ होना भी दशम भाव से मंगल का सम्बन्ध दर्शाता है जोकि इस क्षेत्र से आजीविका पाने का लक्षण है। 
      इस प्रकार देखा गया है कि पुलिस या सेना में अधिकारी बनने हेतु कुण्डली में महत्वपूर्ण भूमिका तृतीय भाव, षष्ठ भाव, दशम भाव और मंगल, सूर्य, राहु, शनि जैसे क्रूर ग्रहों के साथ गुरु ग्रह आदि अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उक्त भाव और भावेश एवं क्रूर ग्रहों का पारस्परिक रूप से दृष्टि, युति, स्थान परिवर्तन जैसे सम्बन्ध जातक को पुलिस या सेना अधिकारी बना देते हैं। तृतीय भाव पराक्रम, वीरता एवं शौर्य का है वही षष्ठ भाव संघर्ष एवं स्पर्धा का है। दसवां भाव हमारा कर्म क्षेत्रा है। जातक को राहु में राहु में सूर्य की प्रत्यन्तर दशा में यह नौकरी प्राप्त हुई। कृतिका नक्षत्रा के सूर्य महादशा में जन्मे इस जातक का यह प्रत्यन्तर समय  26.9.97 से 16.11.97 तक था। राहु तथा सूर्य दोनों ही क्रूर ग्रह हैं तथा लग्न व एकादश भाव में स्थित हैं, इस प्रकार दोनों ने अपनी दशान्तर्दशा व प्रत्यन्तर्दशा आदि में जातक को आजीविका दिलायी। 
ज्योतिष रत्न पत्रााचार पाठ्यक्रम के अनुसार पुलिस या सेना के क्षेत्र में जाने के लिए कई योग है जो यहां बता रहे हैं। इनको कुंडली में देखकर आप भी बता सकते हैं कि अमुक जातक इस क्षेत्र से आजीविका कमाएगा या नहीं। कुण्डली में मंगल का बली होना साहस व पराक्रम का कारक माना गया है। स्वराशि का मंगल, कुंडली के प्रथम या दशम भाव में मंगल की स्थिति या मंगल  द्वारा दशमेश का नियंत्रण हो तो जातक पुलिस अधिकारी या सेना में होता है। इस क्षेत्र में जाने के प्रमुख योग इस प्रकार हैं-
    1. तृतीय भाव में क्रूरग्रह की दृष्टि या युति हो या तृतीयेश की दशम भाव पर दृष्टि या युति हो।
    2. षष्ठ भाव में क्रूर ग्रह(सूर्य, मंगल, शनि, राहु, केतु) की दृष्टि या युति हो या षष्ठ का दशम भाव से सम्बन्ध बना हुआ हो।
    3. एकादश भाव का सम्बन्ध षष्ठ भाव या मंगल से हो।
    4. दशमेश से मंगल की युति हो या परस्पर दृष्टि हो।
    5. तृतीयेश का लग्न भाव में होना या तृतीयेश स्वराशि का तृतीय भाव में हो या नवमस्थ होकर तृतीय भाव पर दृष्टि डाले।
    6. तृतीयेश छठे भाव में हो।
    7. सप्तमेश तृतीय भाव में स्थित हो या चतुर्थेश तृतीय भाव में स्थित हो।
    8. छठे भाव का क्रूर ग्रहों या गुरु से सम्बन्ध हो।
    9. दशम भाव से मंगल व शनि का परस्पर सम्बन्ध हो।
   10. षष्ठेश की छठे भाव पर दृष्टि हो या मंगल का दशमेश या दशम भाव से दृष्टि या युति सम्बन्ध बने।
उक्त योगों में पाया गया कि इनमें त्रिषडाय या त्रिषडायेश के अतिरिक्त क्रूर ग्रहों का महत्वपूर्ण योगदान है। इसके साथ दशम भाव, पहला भाव व चतुर्थ तथा इनके स्वामी ग्रह भी अच्छी भूमिका निभाते हैं। जहां तृतीय भाव साहस, उत्साह, पराक्रम एवं वीरता का सूचक है वहीं षष्ठ भाव संघर्ष एवं स्पर्धा को दर्शाता है और शत्रु पर विजय दिलाता है। 
    अतः पुलिस या सेना में नौकरी हेतु उक्त योगों में से अधिकांश योग यदि जातक की कुण्डली में पाए जाते हैं तो निश्चय ही वह इस तरह की नौकरियां करता है एवं अपनी आजीविका चलाता है। इन योगकारक ग्रहों की दशा, अन्तर्दशा या प्रत्यन्तर दशा का आना भी आवश्यक है।

Read more...

आपकी कुण्डली और योग(भाग-5)-पं. यायावर

>> Wednesday, June 23, 2010


   एक से अधिक ग्रह की युति होती है तो योग बनता है। योग कई प्रकार के होते हैं-आश्रय योग, दल योग, आकृति योग, संख्या योग आदि। इस लेख में कुछ योगों की चर्चा करेंगे जिनको आप अपनी कुण्डली में देखकर फल विचार कर सकते हैं। जिन ग्रहों से योग बनता है वे योग के कारक ग्रह होते हैं। योग का फल योगकारक दशाओं में मिलता है। पूर्व चार भागों में 51 योगों की चर्चा कर चुके हैं! आईए कुछ योगों को समझें।
तीन सौ ज्योतिष योग
52. हंस महापुरुष योग-यह महापुरुष योग है। यदि बृहस्पति अपनी उच्च राशि या स्वराशि में स्थित होकर लग्न या केन्द्र में हो तो यह योग होता है।

फल-इस योग में उत्पन्न जातक का चेहरा लालिमायुक्त, ऊंची नाक, शुभ चरण, हंस सदृश स्वर, कफ प्रकृति, गौर वर्ण, सुकुमार पत्नी, कामदेव सदृश सुन्दर, सुखी, शास्त्रों का अध्ययन करने वाला, निपुण, गुणी, उत्तम कार्य और आचार वाला होता है और उसकी आयु 84 वर्ष की होती है। यहां योगकारक ग्रह गुरु है। 
शम्भू होरा प्रकाश के अनुसार बृहस्पति स्वराशि या उच्च राशि में स्थित होकर लग्न से केन्द्र में हो किन्तु सूर्य या चन्द्रमा से युत हो तो हंस योग बनता है। लेकिन भद्र योग के समस्त शुभफल नहीं मिलते परन्तु गुरु की दशा में सामान्य शुभ फल मिलते हैं। 
होरारत्नम के अनुसार यदि कुण्डली में गुरु स्वराशि या उच्च राशि में स्थित होकर लग्न से केन्द्र में हो पर सूर्य या चन्द्रमा बली न हों तो जो भद्र योग बनता है उसके अनुसार जातक महापुरुष योग के फलों में न्यूनता आती है परन्तु जातक फिर भी सुखी रहता है।   
53. मालव्य महापुरुष योग-यह महापुरुष योग है। यदि शुक्र अपनी उच्च राशि या स्वराशि में स्थित होकर लग्न या केन्द्र में हो तो यह योग होता है।
फल-इस योग में उत्पन्न जातक स्त्री सदृश चेष्टा(हाथ मटकाना, मटक कर चलना, लज्जा करना आदि), शरीर के जोड़ मृदु और सुन्दर, आकर्षक नेत्र, सुन्दर शरीर, गुणी, तेजस्वी, स्त्री, पुत्र वाहन से युक्त, धनी, विद्वान, उत्साही, प्रभु शक्ति सम्पन्न, चतुर, मन्त्राज्ञ, त्यागी, परस्त्री रत होता है और यहां योगकारक ग्रह शुक्र है। 
शम्भू होरा प्रकाश के अनुसार शुक्र स्वराशि या उच्च राशि में स्थित होकर लग्न से केन्द्र में हो किन्तु सूर्य या चन्द्रमा से युत हो तो मालव्य योग बनता है। लेकिन हंस महापुरुष योग के समस्त शुभफल नहीं मिलते परन्तु शुक्र की दशा में सामान्य शुभ फल मिलते हैं। 
होरारत्नम के अनुसार यदि कुण्डली में शुक्र स्वराशि या उच्च राशि में स्थित होकर लग्न से केन्द्र में हो पर सूर्य या चन्द्रमा बली न हों तो जो हंस योग बनता है उसके अनुसार महापुरुष योग के फलों में न्यूनता आती है परन्तु जातक फिर भी सुखी रहता है।   
54. शश महापुरुष योग-यह महापुरुष योग है। यदि शनि अपनी उच्च राशि या स्वराशि में स्थित होकर लग्न या केन्द्र में हो तो यह योग होता है।

फल-इस योग में उत्पन्न जातक राजा या राजा सदृश, वन और पर्वतों से प्रेम करने वाला, बहुतों पर राज करने वाला, क्रूर बुद्धि से युक्त, धातु के व्यापार में कुशल, वाद-विवाद संग विनोद करने वाला, दानी, क्रोध युक्त दृष्टि वाला, तेजस्वी, निज माता का भक्त, शूर, श्याम वर्ण, सुखी, परस्त्रीगामी, और 70 वर्ष तक जीता है। यहां योगकारक ग्रह शनि है। 
शम्भू होरा प्रकाश के अनुसार शनि स्वराशि या उच्च राशि में स्थित होकर लग्न से केन्द्र में हो किन्तु सूर्य या चन्द्रमा से युत हो तो शश योग बनता है। लेकिन शश महापुरुष योग के समस्त शुभफल नहीं मिलते परन्तु शनि की दशा में सामान्य शुभ फल मिलते हैं। 
होरारत्नम के अनुसार यदि कुण्डली में शनि स्वराशि या उच्च राशि में स्थित होकर लग्न से केन्द्र में हो पर सूर्य या चन्द्रमा बली न हों तो जो शश योग बनता है उसके अनुसार महापुरुष योग के फलों में न्यूनता आती है परन्तु जातक फिर भी सुखी रहता है।  
55. चन्द्राधि योग-चन्द्रमा से छठे, सातवें तथा आठवें भाव में शुभग्रह हों तो चन्द्राधि योग होता है। यहां योग कारक ग्रह छठे भाव में बुध, गुरु, शुक्र। सातवें भाव में बुध, गुरु, शुक्र, आठवें भाव में बुध, गुरु, शुक्र।
फल-इस योग में उत्पन्न जातक ग्रहों के बलानुसार राजा, मन्त्री या सेनापति होता है अथवा राजा सदृश सुख का भोक्ता होता है। जीवन सुख संग व्यतीत करता है।

Read more...

कैसे जाने नौकरी होगी या व्यवसाय? -पं. ज्ञानेश्वर

>> Tuesday, June 22, 2010


    आप क्या हर कोई जानना चाहता है कि नौकरी करेंगे या व्यवसाय। किसी को नौकरी अच्छी लगती है तो किसी को व्यापार। हर कोई आजीविका कमाने के लिए अपनी पसन्द का कार्य करना चाहता है। कुंडली के द्वादश भाव, इनके स्वामी और इनका नवग्रह से संबंध का विश्लेषण कर यह जाना जा सकता है कि व्यक्ति या जातक नौकरी करेगा या व्यवसाय।
नौकरी होगी या व्यापार
    इन दोनों में से आजीविका का साधन क्या होगा? यह जानना हर कोई चाहता है। आप भी जानना चाहते हैं तो अपनी कुंडली का विश्लेषण करें। इसके लिए यहां अनमोल 17सूत्र दे रहे हैं, जिसके उपयोग से आप आसानी से जान सकेंगे कि आप नौकरी में सफल होंगे या व्‍यापार में।
1-यदि कुंडली का दूसरा भाव, दशम भाव एवं एकादश भाव का संबंध छठे भाव या इसके स्वामी से होगा तो समझ लें कि आप नौकरी करेंगे।
2-छठा भाव नौकरी का एवं सेवा का है। छठे भाव का कारक भाव शनि है। दशम भाव या दशमेश का संबंध छठे भाव से हो तो जातक नौकरी ही करता है। 
3-यह जान लें कि दशम भाव बली हो तो नौकरी व सप्तम भाव बली हो तो व्यवसाय को चुनना चाहिए। 
4-वृष, कन्या व मकर व्यापार की प्रमुख राशियां हैं।  चन्द्र, गुरु, बुध तथा राहु ग्रह व्यापार की सफलता में मुख्य भूमिका निभाते हैं। यह जान लें कि पंचम व पंचमेश का दशम भाव से संबंध हो तो शिक्षा जो प्राप्त हुई है वह व्यापार या व्यवसाय में काम आती है। 
5-लग्नेश, सप्तमेश, लाभेश, गुरु, चन्द्रमा का बली होना या केन्द्र त्रिकोण में स्थित होना व्यवसाय में सफलता दिलाता है। 
6-सर्वाष्टक वर्ग में दशम की अपेक्षा एकादश में अधिक अंक हों एवं द्वादश में कम अंक हों और द्वादश की अपेक्षा प्रथम में अधिक अंक हों तो जातक की आजीविका अच्छी होती है।
7-द्वितीय, दशम व एकादश का संबंध सप्तम भाव से हो तो जातक व्यापार में सफलता प्राप्त करता है।
8-नौकरी के कारक ग्रहों का संबंध सूर्य व चन्द्र से हो तो जातक सरकारी नौकरी पाता है।
9-प्रायः देखा गया है कि लग्न व लग्नेश को जो ग्रह सबसे अधिक प्रभावित करते हों जातक उसके अनुसार वृत्ति से आजीविका कमाता है।
10-द्वादश भाव का स्वामी यदि 1, 2, 4, , 5, 9, 10वें भाव में स्थित हो तो जातक नौकरी करता है।
दशमेश या दशम भाव में स्थित ग्रह दशमांश कुंडली में चर राशि में स्थित हो तो जातक नौकरी में अधिक सफलता पाता है।  
11-दशमांश कुंडली के लग्न का स्वामी एवं जन्म लग्न के स्वामी की तत्त्व राशि एक हो तो जातक व्यापार में सफलता पाता है।
12-यदि सर्वाष्टक वर्ग में दसवें भाव में सर्वाधिक अंक हों तो जातक निजी व्यवसाय में सफलता पाता है। 
यदि छठे भाव में सर्वाधिक अंक सर्वाष्टक वर्ग में हों तो जातक नौकरी में सफलता पाता है और दूसरों के आधीन कार्य करता है।
13-शनि से दशम व एकादश में अधिक अंक सर्वाष्टक वर्ग में हों तो जातक नौकरी में उच्च पद प्राप्त करता है।
14-व्यापार में सफलता के लिए केन्द्र व त्रिकोण का परस्पर संबंध होना अत्यावश्यक है। यदि है और इनके स्वामियों की दशा आती है तो व्यापार में सफलता अवश्य मिलेगी।
15-यदि तृतीयेश व मंगल बली व उच्च के हैं तो जातक का व्यवसाय उच्च व लाभदायी होगा एवं यश दिलाएगा। यदि निर्बल एवं कमजोर है तो छोटे व्यापार या दुकान से आजीविका कमाकर निर्वाह होगा।
16-यदि वृष तथा तुला के नवांश में आत्मकारक ग्रह स्थित हो तो जातक बड़ा व्यापारी बनता है। 
17-आजीविका विचार में बीस से पैंतालिस वर्ष तक की दशा अन्तर्दशा का विशेष महत्व है। अतः आजीविका विचार करते समय इन पर भी दृष्टि डालनी चाहिए।
     प्रायः देखा गया है कि सूर्य, चन्द्र व दशमेश से दसवें भाव के स्वामी जिस नवांश में स्थित हो उसके अनुसार आजीविका होती है। वह उसी कार्य से धन अर्जित करके जीवनयापन करता है।  
यहां एक जन्‍म कुंडली, दशमांश कुंडली एवं सर्वाष्‍टक कुंडली दे रहे हैं- 
     
    उक्त कुंडली में द्वितीयेश, एकादशेश व भाग्येश का षष्ठेश शनि से संबंध होने के कारण जातक नौकरी करता है। इसके अतिरिक्त सप्तमेश गुरु का लग्न व चतुर्थेश, एकादशेश से भी संबंध है जिस कारण ये व्यक्ति साईड में अपने कार्य से भी आजीविका कमाता है। उदारहण कुंडली में सर्वाष्‍टक कुंडली में समान अंक 30 हैं, इसलिए जातक नौकरी व निजी कार्य दोनों में संलग्‍न है। इस कुंडली में सूत्र 6 पूरी तरह लागू होता है।
     उक्त चर्चा से आप सरलता से यह ज्ञात कर पाएंगे कि आप नौकरी में उन्नति करेंगे या व्यापार में। 
     यदि यह आप ज्ञात कर पाते हैं तो आप अपनी जीवन यात्रा को पूर्ण करने के लिए धनार्जन का प्रकार खोज सकेंगे जिससे आप सफलता आसानी से पा सकें।

Read more...

श्री सत्यनारायण कथा का सार तत्त्व -आर. एस. वर्मा(ज्योतिष रत्न)

>> Monday, June 21, 2010


एक बार सृष्टिपालक श्रीविष्णु जी से महर्षि नारद ने मनुष्यों के कष्ट-क्लेश से मुक्ति व परस्पर प्रीति हेतु सरल व सारगर्भित उपाय जानने का अनुरोध किया। तब सत्यनारायण व्रत कथा विष्णु जी द्वारा बतायी गई थी। सत्यनारायण स्वयंभू होने के साथ निराकार व साकार रूप मे कण-कण में विद्यमान हैं। मन में सत्‌ मार्ग पर चलने का व्रत(प्रतिज्ञा) धारण कर उसके अनुसरण द्वारा ईश्वर को प्राप्त करना है। 
इस व्रतकथा के सन्दर्भ में शान्तनु भिखारी दुःखों से विचलित होकर संत-शरण में जाकर प्रासाद ग्रहण कर मनन व्रत करके 
मोक्ष को प्राप्त हुए। अन्य प्रकरण में लकड़हारे ने सन्त द्वारा ईश्वर के वर्णन को सुना, भावों को समझा और व्रत किया और फलस्वरूप बैकुण्ठ गए। अन्य कथा में एक व्यापारी की धर्मपत्नी ने पड़ोस में हो रही कथा को सुना, समझा और पति से यह अनुष्ठान कराने का अनुग्रह किया तो पति ने शिशु-जन्म पर कराने को कहा। पुत्र-प्राप्ति पर पत्नी द्वारा स्मरण कराने पर फिर टाल गया और पुत्र के विवाह पर करने को कहा। फलतः व्रत न कराने के कारण वह नाना प्राकर के कष्टों में फंस गया और अर्जित धन चोर ले गए व खुद राजा द्वारा कारावास में डाल दिया गया। तब पत्नी द्वारा भूल सुधार के लिए व्रत का अनुष्ठान किया तो व्यापारी ने पुनः सुख-शान्ति पायी और आजीवन कथा का अनुसरण करता रहा। अन्य कथा में राजा प्रजा का निरीक्षण करने श्रमिक बस्ती गए जहां कथा का आयोजन हो रहा था। पर उन्होंने अहंकार वश देव-प्रसाद का तिरस्कार किया। कुछ समय बाद राज्य पर आक्रमण हुआ व राज्य का हरण हो गया। बाद में भूल सुधार कर व्रत किया तो मोक्ष की प्राप्ति हुई।
अतः श्रीसत्यनारायण व्रत कथा द्वारा समाज को सत्‌ रूपी नारायण का बोध कराने के लिए भय की सृष्टि रचाकर भक्त बनाने की प्रक्रिया अपनायी गई है। सत्‌ रूपी नारायण के भाव को जाग्रत करने हेतु यह शिक्षा दी गई है कि बाधाओं के बाद भी सत्‌ पर अडिग रहना है। दूसरे ज्ञानीजनों का अनादर न करो, चाहे आपने उन्हें उनका पारिश्रमिक भी दे दिया हो, नहीं तो श्राप प्राप्त करोगे। तीसरा जैसा आचरण अपने लिए चाहते हो वैसा दूसरों के साथ करो, वरना राजा सदृश अभिशप्त होना पड़ेगा। 
नारायण रूपी परमात्मा के दर्शन के लिए दिव्य दृष्टि का होना आवश्यक है, जोकि सत्‌ है। 
पंचकर्म में स्थित होकर कर्म करने पर ही कोई सत्यव्रत बनता है। 
ध्यान रहे कि छोटा व बड़ा काई कर्म नहीं है, यदि परमात्मा की सेवा मानकर चलें। 
शोषण करने वाला ही शोषित होता है। 
स्वयंभू परमात्मा को इस जगत्‌ के कण-कण में इस प्रकार देखना कि हम स्वयं भी व्यष्टि प्रभावी हो जाएं।
सत्‌ चित आनन्द की तरह सोलह कला(योग्यता) को प्राप्त करो, उन्हें प्राप्त करने का निरन्तर प्रयास करते रहना चाहिए।
वस्तुतः श्रीसत्यनारायण कथा का सार तत्त्व व ध्येय यही है कि वाणी, सच्चिदानन्द सत्‌-सार (आत्मा) व चित्त, अन्तकरणः, आनन्द, सुख का प्रत्यक्ष अनुभव कराना है।
    यह सब को ज्ञात है कि सतोगुणी मनुष्य में ही अनेक दिव्य गुण जैसे सन्तोष, धैर्य, प्रियता, विनम्रता, एकत्व की भावना, आत्मरस आदि होते हैं। प्राणी मात्र का इस स्थिति में स्थित होना ही कल्याण प्राप्ति को निमन्त्रण देना है।

Read more...

वर्षा ऋतुचर्या -डॉ. सत्येन्द्र तोमर, बी.ए.एम.एस, एम.डी.

>> Sunday, June 20, 2010


      वर्षा ऋतु के आते ही वर्षा का जल जब गर्मी से तप्त भूमि पर पड़ता है तो भूमि से भपके छूटते हैं। इन दिनों पाचक अग्नि क्षीण हो जाती है। वर्षा काल में विशेषकर वात दोष कुपित रहता है। पित्त और कफ भी कुपित हो सकते हैं, परन्तु वात दोष प्रधान रूप से कुपित रहता है। 
     गर्मी से राहत मिलने के कारण वर्षा ऋतु सुहावनी लगती है। रिमझिम फुहारें गिरना, बादल गरजना और बिजली चमकना बहुत अच्छा लगता है। मोर तो बादलों की गर्जना सुनकर इतने प्रसन्न हो उठते हैं कि वे नाचने लगते हैं। कोयल की कूक की जगह मेंढकों की र्टर-र्टर सुनाई देने लगती है।
वर्षाकाल तभी सुहावना लग सकता है जब स्वास्थ्य अच्छा और शरीर निरोग हो। इन दिनों में भुट्टे सेंक कर खाए जाते हैं और भजिए खाए जाते हैं। लेकिन तभी खा सकेंगे जब पाचन शक्ति अच्छी हो। यदि अच्छी नहीं होगी तो दस्त, अतिसार आदि की शिकायत हो जाएगी। 
     इस ऋतु में ध्यान देने के लिए सबसे अधिक आवश्क है कि जल शुद्ध हो। इन दिनों में पानी उबाल कर या देखभाल कर पीना चाहिए।
वर्षाकाल में आहार कैसा हो?
     इन दिनों ऐसा आहार नहीं लेना चाहिए जो देर से पचता हो, अपच करता हो। वरना वात कुपित होने से गैस-ट्रबल, पेट फूलना, जोड़ों में दर्द, दमा या श्वास रोग, गठिया आदि की शिकायत हो जाती है। बासी और उष्ण प्रकृति के पदार्थ का सेवन नहीं करना चाहिए। श्रावण मास में दूध दूषित रहता है इसीलिए श्रावण में दूध और हरी सब्जियां तथा भादों में छाछ का सेवन नहीं करना चाहिए। ये स्वास्थ्य के लिए हानिकार हैं। इस ऋतु में छिलके वाली मूंग की दाल में पंचकोल का चूर्ण डालकर खाना हितकारी है। चित्राकोल क्या है? चित्रकोल सोंठ, पीपल, पीपलामूल, चव्य और चित्रक की छाल को कहते हैं। इन्हें सौ-सौ ग्राम लेकर पीसकर परस्पर मिलाकर सीसी में भरकर रख लेना चाहिए। दाल बनाते समय एक-दो चम्मच या 5-10 ग्राम डाल लेना चाहिए। इस ऋतु में आम व भुट्टे विशेष रूप से खाए जाते हैं। आम खाते समय ध्यान रखना चाहिए कि यह खट्टा न हो, पाल से उतरा हुआ, बदबू वाला और खराब स्वाद का न हो। इस चूसकर खाना चाहिए और ऊपर से मीठा दूध पीना चाहिए। 40दिन तक आम व दूध पीने से शरीर पुष्ट व सुडौल बनता है। दुबले लोगों के लिए यह रामबाण है। बच्चों को अमचूर और इमली की खटाई का सेवन कम ही करना चाहिए।
    इसी प्रकार भुट्टे भी ताजे और सेक कर खाने चाहिएं। नींबू व नमक लगाकर बहुत चबाचबाकर खाना चाहिए। इनको खाकर छाछ पीने से ये जल्दी हजम हो जाते हैं। वर्षाकाल के समाप्त होने पर मच्छर व कीड़े-मकोड़े उत्पन्न होते हैं। ऐसे में संचित पित्त कुपित होने लगता है। इस काल में मच्छरदानी लगाकर सोना चाहिए। पित्त कुपित करने वाले पदार्थों का सेवन नहीं करना चहिए। शरीर की सफाई का विशेष ध्यान करना चाहिए। इस काल में चर्म, पीलिया, हैजा, अतिसार आदि रोग होते हैं। बड़ी हरड़ का चूर्ण सेंधा नमक मिलाकर सेवन करना चाहिए। एक दो चम्मच खाकर ऊपर से ठंडा पानी पी लेना चाहिए। यह करने से शरीर स्वस्थ रहता है।

Read more...

सुख समृद्धिकारक अनुभूत प्रयोग

>> Saturday, June 19, 2010


यदि सुख आपसे दूर भागता है और समृद्धि आपके पास नहीं फटकती है तो आपको एक अनुभूत प्रयोग बताते हैं जिसके करने से आपके द्वार सुख-समृद्धि आ जाएगी।
इस प्रयोग को होलिका दहन वाले दिन करना है।
घर के सभी सदस्यों को इसमें योगदान देना होगा।
घर के प्रत्येक सदस्य को देसी घी में भिगोई हुई दो लौंग, एक बताशा और एक पान का पत्ता होलिका पर चढ़ाना चाहिए।
यह चढ़ाने से पूर्व आपको होलिका की 11 प्रदिक्षणा करनी चाहिएं। बाद में सूखे नारियल की आहुति देनी चाहिए।
इस प्रयोग के करने से घर में सुख-समृद्धि आ जाती है। यह प्रयोग अनुभूत है और फलदायी है। इसको आप सरलता से कर सकते हैं।
इस प्रयोग को करके आप भी लाभ उठाएं और अपने मिलने जुलने वालों या परिचितों को बताकर लाभ पहुंचाएं। विश्वास सहित किया प्रयोग सफल होता है।
हमें विश्वास है कि आप आगामी होली पर इसे करके घर में सुख-समृद्धि का प्रवेश अवश्य कराएंगे

Read more...

पारिवारिक सुख के लिए क्‍या करें? - पं. ज्ञानेश्‍वर

>> Friday, June 18, 2010

    
      अष्‍टकूट मिलान(वर्ण, वश्य, तारा, योनि, ग्रह मैत्री, गण, भकूट और नाड़ी) आवश्‍यक है और ठीक न हो तो भी वैचारिक मतभेद रहता है। इसके अलावा कुंडली मिलान को भी नकारना नहीं चाहिए, अपितु गम्‍भीरता से लेना चाहिए। 
     यदि जातक व जा‍तिका की राशियों में षडाष्टक भकूट दोष हो तो दोनों के जीवन में शत्रुता, विवाद, कलह अक्सर होते रहते हैं। यदि जातक व जा‍तिका के मध्य द्विर्द्वादश भकूट दोष हो तो खर्चे व दोनों परिवारों में वैमनस्यता आती है जिसके फलस्वरूप दोनों के मध्य क्लेश रहता है। 
     मिलान करते समय भकूट, योनि, गण, ग्रहमैत्री पर विशेष ध्‍यान देना चाहिए।
     नाडी दोष हो तो सन्‍तान पक्ष्‍ा में समस्‍या रहती है, सन्‍तान होती नहीं है, होती है तो बार बार मर जाती है। नाडी दोष का परिहार न मिले तो अष्‍टकूट ठीक नहीं है ऐसा समझना चाहिए।
     भकूट दोष्‍ा हो तो परस्‍पर प्रेम भाव न रहते से ग़हक्‍लेश रहता है।
    यदि पति-पत्नी के ग्रहों में मित्रता न हो, तो दोनों के बीच वैचारिक मतभेद रहता है। पति-पत्नी के गुणों में मिलान उचित न होने पर पारस्‍परिक मतभेद के कारण गृह क्‍लेश व आपसी तनाव की संभावना बनती है। 
     मेलापक में योनिकूट की महत्ता को भी समझना चाहिए। इससे वर और कन्या के  काम पक्ष की जानकारी होती है। मेलापक पर पर्याप्त ध्यान न देने से जीवन निष्फल हो जाता है। योनिकूट के मेल खाने से वैवाहिक जीवन सुखमय होता है। सर्वविदित है कि प्राणियों में आहार, निद्रा, भय एवं मैथुन ये चार प्रवृत्तियां समान रूप से विद्यमान रहती हैं। मैथुन का महत्व आज के युग में अत्यधिक है। कन्या हो या वर, जिस नक्षत्र में पैदा होता है, उस नक्षत्र का प्रभाव उस पर पड़ता है। उसका मैथुन स्वभाव उसकी योनि के अनुरूप होता है। मेलापक करते समय यदि इस बात पर विचार किया जाए, तो दोनों का शारीरिक संबंध संतोषजनक रहेगा वरना वैवाहिक जीवन में असंतोष आएगा। आधुनिक युग में शुक्र विशेष प्रभावशाली हो रहा है। इससे भविष्य में सेक्स की प्रधानता रहेगी। ऐसे में योनिकूट का महत्व और अधिक बढ़ गया है, जिस पर ध्यान देना ही चाहिए।
   प्राय: 36 में से 18 गुण मिल जाएं तो 50 प्रतिशत मेलापक हो जाता है और दैवज्ञ ठीक बताते हैं। 36 में से 35 गुण वाले मिलान वाले जातक व जातिका पारिवारिक जीवन में दु:खी व तलाक होते देखे गए हैं। यह जान लें कि गुण मिलान ठीक होने के बाद भी यदि तलाक योग व अल्‍पायु योग, चरित्रहीनता का योग, सन्‍तान न होने का योग हो तो ये अवश्‍य घटित होते हैं और पारिवारिक जीवन जीना दूभर हो जाता है।
    निष्‍कर्षत: पति-पत्नी के मध्य अष्टकूट मिलान बहुत महत्वपूर्ण है और इसे ध्‍यान से मिलाना चाहिए। इसके अतिरिक्‍त कुडली मिलान भी परमावश्‍यक हैं। बिना दोनों के मिलान के दैवज्ञ को हां नहीं करनी चाहिए कि कुडली मिल गयी। दोनों के साथ अनेक लोग जुडे होते हैं और वे सब परेशान रहते हैं।

Read more...

किचन संवरे सबकुछ संवरे-पं. ज्ञानेश्वर

>> Thursday, June 17, 2010


    आजकल मॉडूलर किचन का जमाना है। घर में शयनकक्ष, किचन एवं बॉथरूम को बनाते समय विशेष ध्यान देना चाहिए। शरीर को ऊर्जा भोजन से मिलती है। 
जैसा खाएं अन्न वैसा होए मन यह कहावत लोकप्रचलित है। भोजन जितना स्वादिष्ट एवं पौष्टिक होगा स्वास्थ्य भी उतना अच्छा होगा। अच्छा भोजन अच्छी किचन होने पर ही बन सकता है। यदि किचन छोटी एवं गन्दी है तो अच्छे और स्वादिष्ट भोजन की उम्मीद नहीं की जा सकती है। 
प्रायः हम भवन में किचन बनाते समय उसे कम स्थान देने की सोचते हैं। जबकि उसमें खुला स्थान होना चाहिए जिससे उसमें शुद्ध वातावरण का समावेश रहे और मन से भोजन बन सके।
रसोई अन्नपूर्णा का स्थान है। सम्पूर्ण खाद्य सामग्री किचन में होती है। किचन संवारने के लिए किन बातों का ध्यान रखें, आईए उनकी चर्चा करते हैं। ये बातें इस प्रकार हैं-
1. खाना बनाने में अग्नि अत्यावश्यक है जोकि गैस के चूल्हे से प्राप्त होती है। किचन में चूल्हा सदैव आग्नेय कोण अर्थात्‌ दक्षिण-पूर्व में रखना चाहिए। खाना बनाते समय पूर्व की ओर हो तो अति उत्तम है। इस प्रकार से चूल्हा रखने पर किचन में बरकत रहती है और धन के साथ स्वास्थ्य की भी वृद्धि होती है।
2. किचन में सिंक या हाथ धोने का स्थान ईशान कोण में होना चाहिए। रात्रि में किचन में झूठे बर्तन नहीं होने चाहिएं। यदि शेष रहते हैं तो एक टोकरे में भरकर किचन से बाहर आग्नेय कोण में रखने चाहिएं।
3. पीने योग्य जल का भंडारण भी ईशान कोण में होना चाहिए। यह ध्यान रखें कि कभी भी आग्नेय कोण में जल का भंडारण न करें। गैस के स्लैब पर पानी का भंडारण तो कदापि न करें, वरना गृहक्लेश अधिक होगा। पारिवारिक सदस्यों में वैचारिक मतभेद होने लगेंगे। गृहक्लेश अधिक होता है तो किचन में चैक करें अवश्य जल और अग्नि एक साथ होंगे अथवा ईशान कोण में वजन अधिक होगा या वह अधिक गंदा रहता होगा।
3. गीजर या माइक्रोवेव ओवन आग्नेय कोण के निकट ही होने चाहिएं। इसी प्रकार मिक्सी, आटा चक्की, जूसर आदि भी आग्नेय कोण में दक्षिण दिशा की ओर रखने चाहिएं।
4. यदि किचन में रेफ्रीजिरेटर भी रख रहे हैं तो उसे सदैव आग्नेय, दक्षिण या पश्चिम की ओर रखें। ईशान या नैर्ऋत्य कोण में कदापि नहीं रखना चाहिए। यदि रखेंगे तो परिवार में वैचारिक मतभेद अधिक रहेंगे और कोई किसी की सुनेगा नहीं।
5. मसाले, बर्तन, चावल, दाल, आटा या खाद्य पदार्थ का भंडारण दक्षिण या नैऋर्त्य में करना उचित है। 
6. खाली सिलेण्डर नैर्ऋत्य कोण में रखें और प्रयोग में आने वाला गैस सिलेण्डर आग्नेय कोण में दक्षिण दिशा की ओर रखें।
7. भोजन बनाने वाली महिला को किचन में भोजन नहीं करना चाहिए। यदि वह करेगी तो बरकत खतम होगी एवं घर में दरिद्रता आएगी।
8. किचन में कभी भी पूजा का स्थान नहीं बनाना चाहिए। यदि ऐसा करेंगे तो भी बरकत खतम होगी। घर में गृह क्लेश होगा एवं व्यर्थ की बाधाएं आती रहेंगी। बिना बाधा के कोई कार्य पूर्ण नहीं होगा।
9. भोजन बनाते समय भोजन सामग्री बार-बार नहीं निकालनी चाहिए। कोशिश करें कि वह एक बार में ही निकाल लें। यदि एक से अधिक बार निकालनी पड़ें तो हाथ धोकर ही निकालें। गन्दे व झूठे हाथों से न निकालें। यदि ऐसा करेंगे तो अन्नपूर्णा देवी बरकत नहीं होने देगी।
10. यदि आपके घर में क्लेश अधिक होता है तो आपको यह प्रयोग अवश्य करना चाहिए। आटा गूंथते समय गृहिणी को एक चुटकी नमक और एक चुटकी बेसन अवश्य मिला लेना चहिए।
11. बाधाएं अधिक हों और धन रुकता नहीं है। गृहक्लेश अधिक हो व सन्तान बीमार रहती है तो आपको यह प्रयोग नित्य करना चाहिए। प्रातः सर्वप्रथम गैस जलाते समय बिना कुछ बनाए तवा गरम करें और जब गरम हो जाए तो उस पर जल का छींटा मारकर कपड़े से साफ कर तीन रोटी बनाएं। पहली गाय, दूसरी कौए और तीसरी कुत्ते को दें। इससे बाधाओं से मुक्ति मिलेगी व समृद्धि बढ़ेगी।

Read more...

गर्मियों में सताएं घमौरियां-डॉ. राजीव गुप्ता, एम.बी.बी.एस, एम.डी.

>> Wednesday, June 16, 2010

    
गर्मियों में सताएं घमौरियां तो लोग परेशान हो जाते हैं। गर्मियों में बदन पर घमौरियां निकल आना आम बात है। छोटे-छोटे लाल-गुलाबी दाने बदन क किसी भी भाग पर उभर आते हैं और फिर चैन नहीं लेने देते हैं। उनमें जलन सी होती रहती है। 
घमौरियां क्यों होती हैं?
घमौरियां त्वचा के अन्तःपरत में बसी पसीना उत्पन्न करने वाली स्वेद ग्रंथियों पर ताला लगने से उपजती हैं। जब स्वेद ग्रन्थियों से निकासी रुक जाती है और पसीना त्वचा की भीतरी परत में एकत्र हो जाता है, फलस्वरूप त्वचा में दाने उग आते हैं।
डॉक्टरों की भाषा में इसे मिलिएरिया रुब्रा कहते हैं।
घमौरियां अधिकतर छाती, बगलों, हाथों और पैरों पर निकलती हैं। लेकिन छोटे बच्चों में ये चेहरे, पीठ और नितम्बों पर भी निकल आती हैं। 
घमौरियां किसी भी स्त्राी व पुरुष को किसी भी आयु में निकल सकती हैं।
प्रायः नवजात शिशुओं और मोटे लोगों को पसीना अधिक आता है। इसीलिए इनको घमौरियां अधिक निकलती हैं।
घमौरियों का निदान
घमौरियों से मुक्ति पाने के लिए छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखना चाहिए, जिनको कोई भी अपना सकता है। ये बातें इस प्रकार हैं-
1. गर्म मौसम में मुलायम व सूती हल्के रंग के ढीले-ढाले कपड़े पहनने चाहिएं। ऐसा करने से कपड़े पसीने को अधिक मात्राा में सोख लेते हैं और बदन को ठंडक भी पहुंचाते हैं।
2. टाईट कपड़े नहीं पहनने चाहिएं।
3. गर्म मौसम में सूती और ढीले कपड़े ही त्वचा के साथी है। अतः टाईट कपड़ों जीन्स आदि से बचना चाहिए। 
कहने का तात्पर्य यह है कि ऐसे कपड़े नहीं पहनने चाहिएं जिनको पहनकर असुविधा हो और चाल तक बदल जाएं
घमौरियों की औषधि
घमौरियों से मुक्ति पाने के लिए कैलामाइन लोशन बाजार में मिलता है। इसे आप खरीद लें। घमौरियों से जलन और खुजली से मुक्ति के लिए कैलामाइन लोशन का प्रयोग करना चाहिए।
इस लोशन को बदन पर तीन-चार बार लगाना चाहिए। 
हल्के गुलाबी रंग का यह लोशन लगाने से बदन को ठंडक पहुंचती है और खुजली नहीं होती है।  
कैलामाइन लोशन किसी भी दवा विक्रेता या मैडिकल स्टोर से आसानी से मिल जाता है। 
प्रायः इससे ही आराम आ जाता है। लेकिन फिर भी यदि आपको आराम न आए तो आप अपने फैमिली डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।

Read more...

बालक की दीर्घायु के लिए क्या करें?

>> Tuesday, June 15, 2010


     आपका बच्चा बार-बार बीमार पड़ता है और आप इस बात को लेकर परेशान रहते हैं। नित्य डॉक्टर के दर पर चक्कर लगाने पड़ते हैं। यदि आप चाहते हैं कि बच्चा कम बीमार पड़े  और दीर्घायु हो तो आप निम्न बातों का पालन करें-
1. बालक को उसके जन्म नाम से न पुकारें।
2. पांच वर्ष तक बालक को कपड़े मांगकर पहनाएं। पहले वर्ष में तो अवश्य यह करें।
3. तीन या पांच वर्ष तक सिर के बाल न कटाएं।
4. बालक के जन्म दिन पर अन्य बालकों को दूध पिलाएं।
5. चौके की पहली रोटी कुत्ते को प्रतिदिन बिना नागा दें। कुत्ता घर का पालतू नहीं होना चाहिए।
6. बालक को किसी की गोद में दे दें और यह कहकर प्रचार करें कि यह अमुक व्यक्ति का बालक है। 
7. रविवार और बुधवार को उसकी नजर सात बार कोरे कपड़े का टुकड़ा वारकर दायीं टांग के नीचे से निकालकर   गैस पर जला देंने पर भी बच्चा कम परेशान होगा।

Read more...

आपकी कुण्डली और योग (भाग-4)-पं. यायावर

>> Monday, June 14, 2010


एक से अधिक ग्रह की युति होती है तो योग बनता है। योग कई प्रकार के होते हैं-आश्रय योग, दल योग, आकृति योग, संख्या योग आदि। इस लेख में कुछ योगों की चर्चा करेंगे जिनको आप अपनी कुण्डली में देखकर फल विचार कर सकते हैं। जिन ग्रहों से योग बनता है वे योग के कारक ग्रह होते हैं। योग का फल योगकारक दशाओं में मिलता है। आईए कुछ योगों को समझें। पूर्व में 44 योगों की चर्चा कर चुके हैं।
तीन सौ ज्योतिष योग
45. शूल योग-यह संख्या योग है। सभी ग्रह जब तीन भावों में होते हैं तो यह योग बनता है।
फल-इस योग में उत्पन्न जातक प्रखर स्वभाव, आलसी, दरिद्र, हिंसक, समाज से बहिष्कृत, शूर एवं युद्ध में विख्यात होता है।
46. केदार योग-यह संख्या योग है। सभी ग्रह जब चार भावों में होते हैं तो यह योग बनता है।
फल-इस योग में उत्पन्न जातक उपकारक, किसान, सत्यवादी, सुखी, चंचल स्वभाव वाला एवं धनी होता है। मतैक्य से धनी, कृषि से लाभ, सुस्त, बुद्धिमान, उपकारी, नौकरी से लाभ, जीवन के पूर्वाद्ध में कष्ट एवं उत्तरार्द्ध में कष्ट रहित जीवन, माता-पिता का सुख एवं दीर्घायु होता है। 
47. पाश योग-यह संख्या योग है। सभी ग्रह जब पांच भावों में होते हैं तो यह योग बनता है।
फल-इस योग में उत्पन्न जातक जेल जाने वाला, कार्य में दक्ष, प्रपंची, बहुत बोलने वाला, शील रहित, अनेक सेवक वाला एवं विशाल परिवार वाला होता है। मतैक्य से दूजों से सदैव प्रशंसित, धनोपार्जन में रत, अधिक चतुर, बातूनी, पुत्रवान, जनकल्याण की इच्छा रखता है।  
48. दाम योग-यह संख्या योग है। सभी ग्रह जब छह भावों में होते हैं तो यह योग बनता है।
फल-इस योग में उत्पन्न जातक जनता का उपकार करने वाला, न्याय से धन का उपार्जन करने वाला, महाऐश्वर्यशाली, विख्याता, अनेक पुत्र तथा रत्नों से युक्त, धीर एवं विद्वान होता है।  मतान्तर से उपकारी, उत्तम बुद्धि वाला, विद्य तथा धन से यशस्वी, पूर्वायु में बहुत कष्ट पाने वाला एवं उत्तरायु में सुख भोगने वाला, 36वर्ष तक माता-पिता का सुख भोगने वाला, 42वर्ष के बाद आय के अनेक स्रोत बनते हैं। लोगों के विरोध एवं शत्रुता से जीवन में कष्ट मिलता है।  
49. वीणा(वल्लकी) योग-यह संख्या योग है। सभी ग्रह जब सात भावों में होते हैं तो यह योग बनता है।
फल-इस योग में उत्पन्न जातक गीत, नृत्य तथा वाद्य का प्रेमी, कुशल, सुखी, धनी, नेता तथा अनेक सेवक से युक्त होता है। बृहत्पाराशर के अनुसार समस्त कार्यों में प्रवीण एवं गायन वादन आदि कलाओं का शौकीन और धनी होता है।  
50. रूचक योग-यह महापुरुष योग है। यदि मंगल अपनी उच्च या स्वराशि में स्थित होकर केन्द्र में हो तो यह योग होता है।  
फल-इस योग में उत्पन्न जातक सुगठित शरीर, धनी, शास्त्रज्ञ, मन्त्रों के जप एवं अभिचार में कुशल, राजा या राजा सदृश, लावण्य  एवं लालिमा युक्त शरीर वाला, शत्राुओं पर विजय पाने वाला, त्यागी,  70वर्ष की आयु पाने वाला, सुखी, सेना और घोड़ों का स्वामी होता है। यहां योगकारक ग्रह मंगल है।
होरारत्नम के अनुसार यदि कुण्डली में मंगल स्वराशि या उच्च राशि में स्थित होकर लग्न से केन्द्र में जो व सूर्य या चन्द्रमा बली  न हों तो जो रूचक योग बनता है उसके अनुसार जातक महापुरुष योग के फलों में न्यूनता आती है परन्तु जातक फिर भी सुखी रहता है।  
51. भद्र योग-यह महापुरुष योग है। यदि बुध अपनी उच्च राशि या स्वराशि में स्थित होकर लग्न या केन्द्र में हो तो यह योग होता है।
फल-इस योग में उत्पन्न जातक का चेहरा सिंह सदृश, गति हाथी सदृश, पुष्ट ऊरू, उन्नत वक्षस्थल एवं बाहु लम्बे, गोल एवं पुष्ट होते हैं। जातक विख्यात, बन्धुजनों का उपकार करने वाला, विपुल प्रज्ञा, यश, धनी, राजा सदृश होता है और अस्सी वर्ष की आयु पाता है। यहां योगकारक ग्रह बुध है। शम्भू होरा प्रकाश के अनुसार बुध स्व या उच्च राशि का लग्न से केन्द्र में हो किन्तु सूर्य या चन्द्रमा से युत हो तो भद्र योग बनता है। लेकिन भद्र योग के समस्त शुभफल नहीं मिलते परन्तु बुध की दशा में सामान्य शुभ फल मिलते हैं। यहां एक उदाहरण कुण्डली दे रहे हैं जिसमें भद्र महापुरुष योग है। (क्रमशः)

Read more...

बुध-आदित्य योग-ईश्वर पुर्सनाणी

>> Sunday, June 13, 2010


   ज्योतिष में सैकड़ों शुभाशुभ योग हैं। इनमें से एक योग बुध-आदित्य योग है। जब कुण्डली में सूर्य-बुध की युति कहीं भी हो तो यह योग होता है। यह योग अधिकांश कुंडलियों में पाया जाता है। बुध ही एक ऐसा ग्रह है जिसका प्रभाव सूर्य के साथ क्षीण नहीं होता है। यह अवश्य ध्यान रखें कि बुध 13अंश से कम ने हो।  
   बुध-आदित्य योग का सामान्य फल  इस प्रकार है-जातक बुद्धिमान, प्रत्येक कठिनाईयों, समस्याओं को चतुराई से हल करने में समर्थ होता है। अपने कार्यक्षेत्र में विख्यात होता है। प्रायः सुखमय जीवन व्यतीत करता है।
    इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए। फल में राशि व अन्य ग्रह-सम्बन्ध से भी अन्तर आता है। लेकिन प्रायः उक्त फल देखने को मिलता है। इस योग के कारक ग्रह सूर्य व बुध हैं। इसका फल इन ग्रहों की महादशा, अन्तर्दशा या प्रत्यन्तर दशा में मिलता है।
    प्रायः शास्त्रों में यही फल मिलता है। किन्तु अनुभव के आधार पर, इस योग का फल द्वादश भावों में विशिष्ट होता है जोकि इस प्रकार है-
    बुध-आदित्य योग प्रथम भाव में हो तो जातक का कद माता-पिता के बीच का होता है। लग्न में वृष, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु या कुम्भ राशि हो तो कद लम्बा होता है। जातक भूरे बाल वाला, कठोर, साहसी, कुशाग्र बुद्धि, आत्मसम्मानी एवं क्षमाशील होता है। स्त्री जातक में चिड़चिड़ापन होता है। बचपन में आंख, कान, नाक व गले के रोग से कष्ट होता है। 
   बुध-आदित्य योग दूसरे भाव में हो तो जातक की अभिव्यक्ति तार्किक, श्रेष्ठता मनोग्रन्थि का रोगी, इंजीनीयर, घूसखोर एवं ऋण लेकर व्यवसाय करने वाला होता है।
     बुध-आदित्य योग तीसरे भाव में हो तो जातक परिश्रमी, भाई-बहिनों में आत्मीयता न रखने वाला, मौसी के लिए कष्टकारी, भाग्योदय के अनेक अवसर खो देता है एवं परिवार की खुशहाली में बाधक होता है। तीसरे भाव में इस योग का फल सामान्य ही होता है। 
    बुध-आदित्य योग चौथे भाव में हो तो जातक को आशातीत सफलता दिलाता है। माता का स्वास्थ्य अच्छा नहीं रहता है। पत्नी के भाग्य का सहारा मिलता है। निज सम्पत्ति होते हुए भी दूसरों की या सरकारी भवन व वाहन का उपयोग करने वाला। तार्किक बुद्धि, संस्था प्रधान, इंजीनियर, कुलपति, न्यायाधीश या नेता होता है। चतुर्थ या लग्न भाव पाप प्रभावित हो तो उच्च कोटि का अपराधी भी बन सकता है।
     बुध-आदित्य योग पांचवे भाव में हो तो जातक प्रतिभावान, बड़ी बहिन या भाभी से वैचारिक मतभेद होते हैं, चित्त उद्विग्न, वात रोगी, यकृत विकार होता है। मेष, सिंह, वृश्चिक, धनु या मीन राशि में हो तो अल्प संतति होती है। 
     बुध-आदित्य योग छठे भाव में हो तो जातक को शत्रु चिन्ता रहती है, लेकिन आत्मविश्वास बना रहता है। बचपन में मामा पक्ष से लाभ। आवश्यकता पड़ने पर सहयोग प्राप्त नहीं होता है। 
     बुध-आदित्य योग सातवें भाव में हो तो जातक कामुक, यौन रोग से पीड़ित, जीवन साथी की उपेक्षा कर दूसरों के प्रति आकृष्ट होता है। यदि मेष या सिंह राशि में बने तो एकनिष्ठ होता है। अधिकांशतः चिकित्सक व अभिनेताओं की कुंडलियों में यह योग पाया जाता है।
     बुध-आदित्य योग आठवें भाव में हो तो यह योग अशुभफलदायक होता है। दूसरों को सहायता व सहयोग देने के चक्कर में स्वयं उलझ जाते हैं। दुर्घटना का भय बना रहता है। किडनी स्टोन, आमाशय में जलन, आंतों में विकृति की संभावना रहती है। 
    बुध-आदित्य योग नौवें भाव में हो तो  जातक स्वाभिमानी, अहंकारी, पैतृक सम्पत्ति का त्याग करने वाला, शिव शक्ति का उपासक एवं स्वअर्जित सम्पत्ति का सुख भोगता है। 
     बुध-आदित्य योग दसवें भाव में हो तो जातक बुद्धिमान, साहसी, संगीत प्रेमी, धन कमाने में निपुण, धार्मिक स्थानों का निर्माण करने वाला एवं ख्याति प्राप्त करता है।
      बुध-आदित्य योग ग्यारहवें भाव में हो तो जातक यशस्वी, ज्ञानी, रूपवान, संगीत प्रेमी और धन-धान्य से सम्पन्न होता है। जातक लोक सेवा में तत्पर रहता है। 
     बुध-आदित्य योग बारहवें भाव में हो तो बारहवें भाव में अशुभ फल देता है। जुआ, शेयर, सट्टा, अचानक धनलाभ के चक्कर में फंसकर अपना सर्वस्व लुटा बैठता है। चाचा व ताऊ से विरोध तथा अपनी सम्पत्ति उनके चंगुल में फंस जाती है।

Read more...

आपकी कुण्डली और योग(भाग-3)-पं.सत्यज्ञ

>> Saturday, June 12, 2010



एक से अधिक ग्रह की युति होती है तो योग बनता है। योग कई प्रकार के होते हैं-आश्रय योग, दल योग, आकृति योग, संख्या योग आदि। पूर्व दो भागों में 26योगों की चर्चा कर चुके हैं। इस लेख में कुछ योगों की चर्चा करेंगे जिनको आप अपनी कुण्डली में देखकर फल विचार कर सकते हैं। जिन ग्रहों से योग बनता है वे योग के कारक ग्रह होते हैं। योग का फल योगकारक दशाओं में मिलता है। आईए कुछ योगों को समझें।
तीन सौ ज्योतिष योग
27. शक्ति योग-यह आकृति योग है। सप्तम से चार भावों में दशम तक सभी ग्रह हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक निर्धन, विफलताओं से दुःखी, नीच, आलसी, दीर्घायु, युद्ध में निपुण, स्थिर तथा खूबसूरत होता है।
28. दण्ड योग-यह आकृति योग है। दशम से पहले भाव तक सभी ग्रह हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक पुत्रा व स्त्राी से विहीन, निर्धन, निर्दयी, आत्मीयजनों से बहिष्कृत, दुःखी, नीच तथा दास वृत्ति वाला होता है।
29. नौका योग-यह आकृति योग है। पहले भाव से लगातार सात भाव में सभी ग्रह हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक जलीय जीवों या पदार्थों से जीविका चलाने वाला, बहुत महत्वकांक्षा रखने वाला, यशस्वी, दुष्ट, कंजूस, मलिन हृदय वाला एवं लालची होता है। 
30. कूट योग-यह आकृति योग है। चतुर्थ भाव से निरन्तर सात राशियों में सभी ग्रह रहने से यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक असत्य बोलने वाला, जेलर, ठग, क्रूर, अकिंचन, पहाड़ व किलों में रहने वाला होता है।
31. छत्र योग-यह आकृति योग है। सप्तम भाव से लगातार सात भाव में सभी ग्रह स्थित हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक स्वजनों का भरण-पोषण करने वाला, दयालु, राजगण प्रिय, उत्कृष्ट बुद्धि से युक्त, प्रारम्भ एवं वृद्धावस्था में सुखी रहने वाला व दीर्घायु होता है। 
32. चाप योग-यह आकृति योग है। दशम से लगातार सात भावों में सूर्यादि सात ग्रह रहने पर यह योग होता है।  
फल-इस योग में उत्पन्न जातक झूठ बोलने वाला, कारागार का स्वामी, चोर, धूर्त, जंगल में घूमने वाला, भाग्यहीन, मध्यावस्था में सुखी रहता है। 
33-40. अर्धचन्द्र योग-यह आकृति योग है। केन्द्र से भिन्न आठ भावों में सातों ग्रह हों तो आठ प्रकार का अर्धचन्द्र योग होता है-                         
दूसरे से अष्टम भाव पर्यन्त सातों ग्रह हों तो प्रथम अर्धचन्द्र योग होता है।
पंचम से एकादश भाव पर्यन्त सातों ग्रह हों तो द्वितीय अर्धचन्द्र योग होता है। 
अष्टम से द्वितीय भाव पर्यन्त सातों ग्रह हों तो तृतीय अर्धचन्द्र योग होता है। 
एकादश से पंचम भाव पर्यन्त सातों ग्रह हों तो चतुर्थ अर्धचन्द्र योग होता है। 
तृतीय से नवम भाव पर्यन्त सातों ग्रह हों तो पंचम अर्धचन्द्र योग होता है। 
षष्ठ से द्वादश भाव पर्यन्त सातों ग्रह हों तो षष्ठ अर्धचन्द्र योग होता है। 
नवम से तृतीय भाव पर्यन्त सातों ग्रह हों तो सप्तम अर्धचन्द्र योग होता है। 
द्वादश से षष्ठ भाव पर्यन्त सातों ग्रह हों तो अष्टम अर्धचन्द्र योग होता है।    
फल-इन आठ में से किसी एक योग में उत्पन्न जातक सेनापति, सुन्दर तन वाला, राजवल्लभ,बली मणि, स्वर्ण तथा भूषणों से युक्त होता है। 
41. चक्र(चन्द्र) योग-यह आकृति योग है। लग्न से 1,3,5,7,9,11 इन छह भावों में सभी ग्रह हों तो चक्र योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक नतममस्तक राजगण के मुकुट रत्नों की कान्ति से उज्ज्वल चरण वाला चक्रवर्ती राजा होता है।
42. समुद्र योग-यह आकृति योग है। द्वितीय भाव से 2,4,6,8,10,12 इन छह भावों में सभी ग्रह हो तो समुद्र योग होता है।
फल-इस योग में उत्पन्न जातक रत्नों से परिपूर्ण, धनी, भोगी, जनप्रिय, पुत्रवान्‌, स्थिर, विभव वाला एवं साधु स्वभाव का होता है।
43. गोल योग-यह संख्या योग है। जब सभी ग्रह एक ही भाव में हों तो गोल योग होता है।
फल-इस योग में उत्पन्न जातक बली, निर्धन, विद्या व विज्ञान से रहित, मलिन हृदय वाला, सतत्‌ दुःखी होता है।
44. युग्म योग-यह संख्या योग है। सभी ग्रह जब दो भावों में होते हैं तो यह योग बनता है।
फल-इस योग में उत्पन्न जातक पाखण्डी, धनहीन, समाज से बहिष्कृत, माता, पुत्र, धर्म से रहित होता है।
अन्य योगों की चर्चा अगले अंक में करेंगे। जिससे ज्योतिष योगों का ज्ञान आपका बढ़ सके।(क्रमशः)

Read more...

वायु विकार से मुक्ति का अनुभूत प्रयोग

>> Friday, June 11, 2010


यदि आपको आये दिन गैस रहती है। वायु विकार रहता है। गैस बहुत बनती है। इस विकार से आप हर वक्त परेशान रहते हैं तो आपको वायु विकार से बचने का एक उपाय बता रहे हैं। यह टोटका अचूक है और इसमें मन्त्र का प्रयोग होता है।
यहां एक मन्त्र बता रहे हैं जिसको किसी भी सूर्य ग्रहण में 10माला पढ़कर सिद्ध कर लें।मन्त्र इस प्रकार है-

ऊँ वम्‌ वज्रहस्ताभ्याम्‌ नमः

बाद में मिश्री या कोई वस्तु को इस मन्त्र से 21 बार अभिमन्त्रित कर दें।
रोगी को वह मिश्री खाने को दे दें। वायु विकार में तुरन्त आराम होगा।
इस मन्त्र को जितना जपेंगे उतना अधिक सिद्ध होगा और लाभ भी अधिक होगा। वायु विकार से मुक्ति का अनुभूत मन्त्र प्रयोग है। इस मन्त्र को करके आप भी लाभ उठाएं और अपने मिलने जुलने वालों या परिचितों को बताकर लाभ पहुंचाएं। विश्वास सहित किया प्रयोग सफल होता है।

Read more...

सूर्य व्रत से सन्तान प्राप्ति की कथा -श्रीमती लक्ष्मी पुरी

>> Thursday, June 10, 2010


    द्वापर युग के समय सोलह कलाओं से पूर्ण श्रीकृष्ण ने एक समय अपनी बुआ पांडु की पत्नी कुंती के आश्रम काम्यवन में पहुंच गए। उस समय पांडव कुंती व द्रौपदी सहित वनवास का समय व्यतीत कर रहे थे।
कृष्ण जी अपनी बुआ कुंती से बोले-मैं आपके पांचों पुत्रों को वनवासी वेश में देखकर दुःखी हूँ। मुझे सदैव इस बात का भय रहता है कि पापी दुर्योधन तुम लोगों के ऊपर कोई आघात न कर दे। इन समस्त कष्ट व विपत्ति से मुक्ति के लिए मैं आप सबको सूर्य आराधना करने का अनुग्रह करता हूँ। इसका कारण यह है कि सूर्यदेव ही सभी जीवों के नियंता तथा प्राण हैं उनके तेज से ही जीवों का उद्धार होता है।
कृष्ण जी ने उन्हें बतलाया कि एक समय भगवान्‌ शंकर जी से पार्वती जी से कहा-हे पार्वती! यदि आप इस बात का ज्ञान प्राप्त करना चाहती हैं तो मथुरा पुरी में चली जाएं वहां सूर्य की आत्मजा यमुना जी की धारा प्रवाहित होती है। यमुना के तट पर ऋषि-मुनि महर्षि आदि निरंतर तपस्या में मग्न रहते हैं।
संहार कर्ता शिवजी की आज्ञा को प्राप्त कर पार्वती जी यमुना के तट की ओर चल पड़ी। कुछ दूर जाने पर उन्हें विलाप करती एक स्त्री दिखाई पड़ी। जब पार्वती जी ने उससे पूछा कि तुम कौन हो? तब उसने पार्वती जी को बताया कि मैं कुसुमवती हूँ। मेरा निवास कुसुमावर वन के मध्य है। विवाह होने के कई वर्षों के पश्चात भी जब मुझे कोई पुत्र नहीं हुआ तो मेरे पतिदेव बसन्त ने मेरा परित्याग कर दिया इस प्रकार आज मैं पति से विमुख एवं निराश्रिता हो गई हूँ।
अब पार्वती जी के साथ वह स्त्री कुसुमवती आगे चली, इतने में ही उन्हें विलाप करती हुई एक दूसरी स्त्री मिली। उसने उन दोनों को बताया कि मेरा नाम गंगा है। मेरे पति महारााधिराज शांतनु ने पुत्रों के जीवित न रहने के कारण मुझे अत्यधिक अपमानित किया है। जिसे मैं दुःखी होकर अपने घर को छोड़कर चली आयी हूँ।
थोड़ा आगे बढ़ी तो मधुबन के समीप मांझी नाम की एक और स्त्री मिली जो पति के समस्त वैभव का नाश होने के कारण गृह से परित्याग कर दी गई।
इसके अनन्तर थोड़ा आगे जाने पर कुमुदबन में कुमदा नामक एक और स्त्री से भेंट हुई। उस स्त्री ने बताया कि मेरे पति को राजा ने बंदी बना लिया है। इस कारण मैं व्याकुल होकर रो रही हूँ।
उन सभी स्त्रियों को साथ लेकर पार्वती जी यमुना नदी के तट पर जा पहुंची। उस तट पर लोगों के द्वारा पूजनोत्सव देखकर पार्वती जी ने ऋषि पत्नियों से प्रश्न पूछा-÷आप लोग यहां किस देवता की आराधना कर रही हैं तथा इसका क्या विधान है?'
पार्वती जी के प्रश्न को सुनकर एक ऋषि पत्नी बोली-यह आराधना संसार का कल्याण करने वाले भगवान्‌ सूर्यनारायण का व्रत है। जो सभी नर व नारी के मनोरथों को पूर्ण करते हैं। इस व्रत से अभीष्ट की सिद्धि एवं समस्त मनोरथ पूर्ण होते हैं। यदि आप भी कोई वरदान सूर्य देवता से प्राप्त करना चाहती हैं तो इस व्रत को करके निःसन्देह प्राप्त कर सकती हैं।
ऋषि पत्नी की ऐसी बातें सुनकर पार्वती जी अत्यन्त प्रसन्न हुईं तथा उन स्त्रियों से सूर्यदेव के व्रत का विधान तथा फल की जानकारी प्राप्त करके भगवान शंकर जी के पास कैलाश पर्वत लौट आयीं।
वहां आने के पश्चात्‌ पार्वती जी ने विधि-विधान से इस व्रत को करके ही समस्त विनों के नाशक, एक दंत, अग्र पूजा के  अधिकारी गणेश जी को पुत्र के रूप में प्राप्त किया। वह व्रत विधि इस प्रकार है-रविवार को प्रातःकाल उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करके। पूजन स्थल को गाय के गोबर से लीपकर सूर्य देव की प्रतिमा के समक्ष धूप व दीप जलाएं और सूर्य के तान्त्रिक मन्त्रा का 21 बार जाप करें। यह मन्त्र इस प्रकार है-ऊँ ह्रीं घृणिः सूर्याय नमः। ऊँ सूर्याय नमः। तदोपरान्त रविवार व्रत की कथा पढ़ें। दिन में एक बार भोजन करें तथा भोजन से पूर्व सूर्यदेव को भोग लगाएं। इस व्रत को 12 रविवार लगातार करना चाहिए। व्रत का पालन करने से मानसिक क्लेशों से मुक्ति मिलती है तथा हृदय को शान्ति प्राप्त होती है। रोग दूर होते हैं। सन्तान की प्राप्ति होती है। निर्धनों को धनलाभ होता है। सूर्य देव की उपासना से समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति होती है तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है।

Read more...

आपकी कुण्डली और योग(भाग-2) -पं. यायावर

>> Wednesday, June 9, 2010


एक से अधिक ग्रह की युति होती है तो योग बनता है। योग कई प्रकार के होते हैं-आश्रय योग, दल योग, आकृति योग, संख्या योग आदि। इस लेख में कुछ योगों की चर्चा करेंगे जिनको आप अपनी कुण्डली में देखकर फल विचार कर सकते हैं। जिन ग्रहों से योग बनता है वे योग के कारक ग्रह होते हैं। योग का फल योगकारक दशाओं में मिलता है। आईए कुछ योगों को समझें। पूर्व में 12 योगों की चर्चा कर चुके हैं।
तीन सौ ज्योतिष योग
13. शकट योग-यह आकृति योग है। लग्न और सप्तम में सभी ग्रह हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक रोग पीड़ित, बुरे नाखुनों वाला, मूर्ख, गाड़ी चलाकर आजीविका अर्जित करने वाला, निर्धन, मित्राों व आत्मीय जनों से विहीन होता है।
14. विहग योग-यह आकृति योग है। चौथे से दसवें तक सभी ग्रह हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक भ्रमणशील, पराधीन, दूत, सुरत से जीविका अर्जित करने वाला, ढीठ व झगड़ालू होता है।
15. वज्र योग-यह आकृति योग है। शुभग्रह लग्न तथा सातवें हों और पापग्रह चौथे व दसवें हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक बचपन व वृद्धावस्था में सुखी, शूर, सुन्दर, निरीह, भाग्यहीन, दुष्ट एवं जनविरोधी होता है।
16. यव योग-यह आकृति योग है। लग्न व सप्तम में पापग्रह हों तथा चौथे व दसवें शुभग्रह हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक व्रत, नियम तथा शुभकार्य में संलग्न, मध्यावस्था में सुख, धन व पुत्रा से युक्त, दानी एवं स्थिर बुद्धि होता है।
17. कमल योग-यह आकृति योग है। सभी ग्रह चारों केन्द्र में हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक ऐश्वर्य तथा गुणों से युक्त, दीर्घायु, यशस्वी, शुद्ध एवं सैकड़ों सत्कर्म करने वाला नृप या नृप सदृश होता है।
18. वापी योग-यह आकृति योग है। केन्द्र से अन्य(पणफर तथा आपोक्लिम भाव) में सभी ग्रह हों तो यह योग होता है।  
फल-इस योग में उत्पन्न जातक धन संग्रह करने में प्रवीण, स्थिर धन व सुख के साथ पुत्रों से युक्त, नेत्र सुखकारी, नृत्यादिकों से प्रसन्न रहने वाला राजा होता है।
19. वापी पणफर योग-यह आकृति योग है। केन्द्र से अन्य पणफर भावों में सभी ग्रह हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक धन संग्रह करने में प्रवीण, स्थिर धन व सुख के साथ पुत्रों से युक्त, नेत्र सुखकारी, नृत्यादिकों से प्रसन्न रहने वाला राजा होता है।
20. वापी आपोक्लिम योग-यह आकृति योग है। केन्द्र से अन्य आपोक्लिम भाव में सभी ग्रह हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक धन संग्रह करने में प्रवीण, स्थिर धन व सुख के साथ पुत्रों से युक्त, नेत्र सुखकारी, नृत्यादिकों से प्रसन्न रहने वाला राजा होता है।
21. श्रृंगाटक योग-यह आकृति योग है। सभी ग्रह त्रिकोण भाव 1,5,9 में स्थित हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक युद्धप्रेमी, सुखी, राजवल्लभ, सुन्दर स्त्री युक्त, धनी एवं स्त्री से द्वेष करने वाला होता है।
22. हल योग-यह आकृति योग है। सभी ग्रह 2, 6, 10 वें भाव में स्थित हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक अतिभोजी, निर्धन, कृषक, दुःखी, उद्विग्न, बन्धु व मित्रों से युक्त व दास वृत्ति का होता है।
23. हल योग-यह आकृति योग है। सभी ग्रह 3, 7, 11वें भाव में स्थित हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक अतिभोजी, चाटुकार, मित्रों से युक्त, लोगों में लोकप्रिय, कृषि कार्य से आजीविका अर्जित करने वाला एवं निर्धनता से दुःखी होता है।
24. हल योग-यह आकृति योग है। सभी ग्रह 4, 7, 12वें भाव में स्थित हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक अतिभोजी, चाटुकार, मित्रों से युक्त, लोगों में लोकप्रिय, कृषि कार्य से आजीविका अर्जित करने वाला एवं निर्धनता से दुःखी होता है। 
25. यूप योग-यह आकृति योग है। लग्न से चौथे भाव तक सभी ग्रह स्थित हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक आत्मज्ञानी, यज्ञ कार्य करने वाला, स्त्रीयुक्त, पराक्रमी, व्रत, यम, नियम पर चलने वाला विशिष्ट पुरुष होता है।
26. शर योग-यह आकृति योग है। सभी ग्रह चौथे से सप्तम तक स्थित हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक तीर बनाने वाला, जेलर, शिकार से धनी, हिंसक तथा बुरे कार्य करने वाला होता है।
अन्य योगों की चर्चा अगले अंक में करेंगे।(क्रमशः)

Read more...

अचानक धनहानि से बचने का अनुभूत प्रयोग

>> Tuesday, June 8, 2010


यदि आपको आये दिन अचानक धनहानि हो जाती है या किसी प्रकार से भी कोई न कोई हानि हो जाती है तो समझ लें कि आपके घर में झाड़ू रखने का कोई निश्चित स्थान नहीं है। आपके घर में झाड़ू इधर-उधर यूं ही खुले में रखी रहती है। 
यदि आप अचानक होने वाली हानि से बचना चाहते हैं तो आपको कुछ विशेष नहीं करना है। बस अपने घर में यूं ही इधर-उधर खुले में पड़ी झाड़ू का कोई निश्चित स्थान बनायें। झाड़ू ऐसे स्थान पर रखें जिससे वो किसी को नजर न आये। इसको करने से आप अचानक होने वाली धन हानि से बच जाएंगे तथा सुख-समृद्धि का आगमन होने लगेगा। आपके घर का कोई सदस्य अनावश्यक खर्च करता है और बहुत अधिक करता है तो इसमें भयभीत व चिन्तित होने की आवश्यकता नहीं है। इसके लिए एक छोटा सा टोटका करें जोकि इस प्रकार है-जो व्यक्ति अनावश्यक खर्च करता है उसके हाथों सूर्योदय के उपरान्त एवं सूर्यास्त से पूर्व कुछ पैसे किसी निर्धन को दान करा दें और फिर अगले बुधवार को उसके हाथों कुछ धन हिजड़ों को दान करा देंगे तो अनावश्यक खर्च बन्द हो जाएगा।

Read more...

आपकी कुण्डली और योग(भाग-1)-यायावर

>> Monday, June 7, 2010


    एक से अधिक ग्रह की युति होती है तो योग बनता है। योग कई प्रकार के होते हैं-आश्रय योग, दल योग, आकृति योग, 
संख्या योग आदि। इस लेख में कुछ योगों की चर्चा करेंगे जिनको आप अपनी कुण्डली में देखकर फल विचार कर सकते हैं। जिन ग्रहों से योग बनता है वे योग के कारक ग्रह होते हैं। योग का फल योगकारक दशाओं में मिलता है। आईए कुछ योगों को समझें।
तीन सौ ज्योतिष योग
1. रज्जु योग-यह आश्रय योग है। चर राशि में सभी ग्रह स्थित हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक भ्रमण प्रेमी, सुन्दर, धनार्जन के लिए परदेश में जाने वाला और स्वस्थ रहने वाला, क्रूर तथा दुष्ट स्वभाव का होता है। 
2. रज्जु योग-यह आश्रय योग है। चर राशि लग्न हो तथा कई ग्रह चर राशि में स्थित हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक महत्वाकांक्षी, प्रसिद्ध, यश के भ्रमण करने वाला, यात्राा प्रिय, त्वरित निर्णय लेने वाला,  उसका निर्णय ग्रहणशील, बौद्धिक रूप से सक्रिय, विस्तृत दिमाग वाला, होता है। कभी-कभी परिवर्तनशील स्वभाव वाला, अविश्वसनीय, अनिर्णय, अस्थिर मन, संघर्ष करने वाला और स्थिर सम्पत्ति बनाने में सफलता नहीं मिलती है। 
3. मुसल योग-यह आश्रय योग है। स्थिर राशि में सभी ग्रह स्थित हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक मानी, ज्ञानी, धनसम्पत्ति से युक्त, राजप्रिय, विख्यात, अनेक पुत्रा वाला, स्थिर बुद्धि से युक्त होता है।
4. मुसल योग-यह आश्रय योग है। स्थिर राशि लग्न हो एवं कई ग्रह स्थिर राशि में स्थित हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक मानी, ज्ञानी, धनसम्पत्ति से युक्त, राजप्रिय, विख्यात, अनेक पुत्रा वाला, स्थिर बुद्धि से युक्त होता है। कुछ भी हो कभी-कभी जातक जिद्दी, निर्णय लेने मे असमर्थ तथा परिवर्तन स्वीकार करने में कठिनता महसूस करता है।
5. नल योग-यह आश्रय योग है। द्विस्वभाव राशि में सभी ग्रह स्थित हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक हीनांग, या अधिक धनसंचय कर्ता, अत्यन्त कुशल, बन्धुओं से प्रेम करने वाला एवं सुन्दर हाता है।
6. मुसल योग-यह आश्रय योग है। लग्न द्विस्वभाव राशि का हो और कई ग्रह द्विस्वभाव राशि में हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक हीनांग, या अधिक धनसंचय कर्ता, अत्यन्त कुशल, बन्धुओं से प्रेम करने वाला एवं सुन्दर हाता है। उसमें अवसर चूकने की प्रवृत्ति होती है जिस कारण उसे उदासी और निराशा होती है।
7. माला योग-यह दल योग है। सभी शुभग्रह तीन केन्द्र भावों में हो और पापग्रह केन्द्र से अतिरिक्त भावों में स्थित हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक सुखी, वाहन, वस्त्रा, अन्न, आदि भोग्य सामग्री से युक्त व अनेक सुन्दर स्त्राी से युक्त होता है।
8. सर्पयोग-यह दल योग है। सभी अशुभग्रह तीन केन्द्र भावों में हो और शुभग्रह केन्द्र से अतिरिक्त भावों में स्थित हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक कुटिल, दुष्ट, निर्धन, दुखी, दीन तथा दूसरों के अन्न जल पर जीवित रहता है।
9. गदा योग-यह आकृति योग है। सभी ग्रह पहले से चौथे भाव तक हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक धन अर्जन के लिए उद्योग रत्‌, यज्ञ कराने वाला, शास्त्रा तथा गान में प्रवीण और धन व स्वणार्दि रत्नों से परिपूर्ण होता है।
10. शंख योग-यह आकृति योग है। सभी ग्रह चौथे से सातवें भाव के बीच में स्थित हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक धनार्जन में व्यस्त, धनी, विद्वान, धार्मिक ग्रन्थों का ज्ञान रखने वाला, देखने में भयंकर एवं ईष्यालु होता है। 
11. विभुक योग-यह आकृति योग है। सभी ग्रह सात से दसवें भाव के बीच में स्थित हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक धनार्जन में व्यस्त, धनी, विद्वान, धार्मिक ग्रन्थों का ज्ञान रखने वाला, देखने में भयंकर एवं ईष्यालु होता है।
12. ध्वज योग-यह आकृति योग है। सभी ग्रह दस से पहले भाव के बीच में स्थित हों तो यह योग होता है। 
फल-इस योग में उत्पन्न जातक धनार्जन में व्यस्त, धनी, विद्वान, धार्मिक ग्रन्थों का ज्ञान रखने वाला, देखने में भयंकर एवं ईष्यालु होता है।
    अन्य योगों की चर्चा भाग 2 में करेंगे।(क्रमशः)

Read more...

  © Blogger templates Palm by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP